Sawan Kajri
Sawan Kajri

सखी बरसे खूब सावनवा ना ( कजरी)

( Sakhi barse khoob sawanwa na ) 

 

बहे जोर-जोर शीतल पवनवा
सखी बरसे खूब सावनवा ना ….2

जब से बरखा ऋतु है आई
बदरी नभ में खूब छाई। 2
करिया लागे धरती और गवनवा ना…..
सखी बरसेला सवनवा ना…..

नदी नार जल से भरे
पेड़ रुख हुए हरे । 2
हरियर भईल खेत और सिवाना ना….
सखी बरसेला सवनवा ना …..

बरसे सावन खूब पानी
होवे खेती मनमानी। 2
दिखे खेत खेत निहुरा किसनवा ना…..
सखी बरसेला सवनवा ना…

पत्नी जाके पति से बोले
कंठ पपीहा खूब खोले। 2
मौसम लागि रहा आज बेइमानवा ना ….
सखी बरसेला सवनवा ना….

बदरा गरजे जोर-जोर
बिजुरी चमके चहु ओर। 2
आवा भाग चली घरे में सजनवा ना…
सखी बरसेला सावनवा ना…

 

कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)

यह भी पढ़ें :-

वृक्ष धरा के मूल | Vriksh Dhara ke Mool

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here