सीधी उँगली से घी नहीं निकलता

सीधी उँगली से घी नहीं निकलता

देखा जाए तो बेईमान होना आसान काम नहीं है। इसके लिए ईमान बेचना पड़ता है। आज के इस कलयुगी संसार में लोगों की पहचान करनी बहुत मुश्किल हो गई है। कुछ पता नहीं चलता कब, कौन, कहां, आपके साथ विश्वासघात कर दें। गैर तो गैर अपनों तक पर विश्वास करना बड़ा मुश्किल हो गया है।

लेकिन क्या करें, विश्वास तो करना ही पड़ता है। बिना विश्वास किये जिंदगी जीना नामुमकिन है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो देखने में बहुत शरीफ, सज्जन नजर आते हैं। चेहरे से तेज चमकता है, दिन-रात भगवान के भजन सुनते हैं, गाते हैं, भंडारा करवाते हैं.. बहुत प्यार से मीठी-मीठी बातें करते हैं।

ऐसा लगता है मानो मुख से शहद टपक रहा हो, जबकि ये लोग ही सबसे बड़े चोर होते हैं, कपटी होते हैं, बेईमान होते हैं। इसके बाद भी अपनी बातों को सही साबित करना और दूसरे इंसान को झूठा ठहराना इनको बखूबी आता है।

कुछ कुछ ऐसे ही है हमारी कहानी के चौधरी दयाशंकर साहब। जमीन-जायदाद, रुपये वगैरह की कोई कमी नहीं। 100 बीघे जमीन होगी। प्रोपर्टी खरीदने बेचने के काम में भी लगे हुए हैं।

माथे पर काफी बड़ा टीका लगाते हैं। दिन-रात गुरुवाणी सुनते हैं, चेहरे पर मासूमियत और तेज झलकता है। बातें इतनी प्यारी-प्यारी करते हैं कि कोई भी व्यक्ति उनके झांसे में आसानी से आ जाए। एक बार जब वह व्यक्ति उन पर विश्वास कर ले, तो फिर उनको बेईमान बनने में देर नहीं लगती। वे उसके रुपए मार लेते हैं या जमीन हड़प लेते हैं। ईश्वर ने उनको इतना सब कुछ दिया है, फिर भी दौलत इकट्ठा करने की उनकी हवस मिटती ही नहीं है।

एक बार उन्होंने घर की दोहरी मंजिल बनाने का काम छेड़ दिया। घर बनाने में और ईंटों की जरूरत आन पड़ी। ईंटो के भट्टे पर जाते समय, रास्ते में उन्हें ईटों से भरी ट्रैक्टर-ट्राली नजर आयी। उन्होंने ट्रैक्टर वाले से पूछा-

“ईंटें बेचोगे?”

“बिल्कुल सर, बेचने के लिए ही सुबह से ट्राली लेकर घूम रहे हैं। अगर आपको जरूरत है तो ले लो। ठीक-ठाक रुपए लगा लेंगे। ईंटों में कोई शिकायत नहीं होगी।”

“किस भाव दोगे?”

‘पांच हजार रुपये प्रति हजार ईंटो का रेट चल रहा है। हमारी ट्राली में लगभग तीन हजार ईंटें होंगी। इस हिसाब से पन्द्रह हज़ार रुपये बैठ रहे हैं। आप सभी ईंटो के दस हजार रुपये दे देना।”

“इतने पक्के कैसे हो कि ट्राली में ईंटें तीन हज़ार ही होंगी। कम भी तो हो सकती हैं।”

“हम रोज ट्राली भरकर ईंटें जगह-जगह बेचने का काम करते हैं। इसलिए हमें पता है। दो चार ईंटो का कह नहीं सकते। ईंटें इससे ज्यादा भी हो सकती हैं।”

उन्होंने पूरी ट्राली तय करके अपने घर पर उतरवा ली। ईंटें उतरवाने के बाद उन्होंने तय रकम में से भी दो हजार रुपये कम करके ट्रैक्टर वाले को आठ हजार रुपये दिए। ट्रैक्टर वालों ने बाकी दो हज़ार रुपये मांगे तो उन्होंने कहा कि अभी तो मकान बनने का काम रहा है। अभी ईंटों की जरूरत और पड़ेगी। सब ईंटें हम आपसे ही लेंगे। अभी यही रख लो। आपको हम आगे फायदा करवा देंगे।”

ट्रैक्टर वाले आठ हजार रुपये लेकर चले गए। उनके जाने के बाद जब चौधरी साहब ने ईंटें गिनी तो ईंटें संख्या में लगभग 200 कम थी। उन्हें ईंट वालों की बेईमानी पर बहुत गुस्सा आया। उन्होंने उनको सबक सिखाने की सोची।

तीन दिन बाद फिर से उन्हें वही ईंटो से भरी ट्रॉली नजर आयी। इस बार भी उन्होंने पूरी ट्राली दस हजार रुपये में तय की और घर पहुंच कर सारी ईंटें उतरवाकर, मात्र दो हज़ार रुपये दिए।

बाकी शेष रुपए कल देने का वादा किया। इसके बाद उनकी कल ही नहीं आई। उन्होंने सारी ईंटें मकान बनवाने में चिनवा दी। ईंट वाले चक्कर लगा लगाकर थक गए पर उन्हें रुपए नहीं मिले। इस तरह चौधरी साहब ने अपने साथ की गई बेईमानी के लिए बेईमान ईंटों वालों को सबक सिखाया।

चौधरी साहब ने घर बन जाने के बाद पूरे घर की रंगाई-पुताई करवाने के काम का ठेका अमित को दिया। ठेका चालीस हजार रुपये में तय हुआ, लेकिन काम पूरा करने के बाद अमित को मात्र पन्द्रह हज़ार रुपये का भुगतान किया और पच्चीस हजार रुपये अपनी मजबूरी बताकर(अभी नहीं है बोलकर) रोक लिये।

बाकी पेमेंट अगले तीन महीने में करने का वायदा किया। अमित मन मसोस कर रह गया। वह करता भी तो क्या करता। उसे चौधरी साहब बड़े अच्छे इंसान लगे थे। पर वे इस तरह उसके रुपये रोकेंगे, इसका उसे अंदेशा भी न था। 3 महीने बाद जब अमित रुपए मांगने आया तो चौधरी साहब ने गुस्से से अमित से कहा-

“तुमने हमारे साथ धोखा किया है। रंगाई-पुताई में घटिया किस्म का मिलावटी रंग, पेंट इस्तेमाल किया। तुमने काम ठीक से नहीं किया। दीवारों को गौर से देखो। मात्र 3 महीनों में ही उनका रंग हल्का पड़ गया है।

जितना काम तय किया था, उतना काम तो तुमने किया ही नहीं। तुम्हारे काम के अनुसार मैं तुम्हें रुपए पहले ही दे चुका। अब एक पाई भी नहीं दूंगा। काम ठीक से करते नहीं और रुपये मांगने आ जाते हैं। निकल जाओ यहां से।”

चौधरी साहब के रुपए देने से इनकार करने पर अमित गिड़गिड़ाते हुए बोला-

“चौधरी साहब, कैसी बातें कर रहे हो। आपने ही तो हमें 3 महीने बाद पेमेंट देने के लिए कहा था। उस समय तो आप मेरे काम से बहुत खुश थे। अब आपको क्या हो गया है? आपको दिखाकर, पूछ-पूछ कर ही तो रंगाई पुताई का काम किया था। अगर आपको कोई कमी नजर आ रही थी, तो तभी बतानी थी।

अब क्या फायदा? इस तरह बेईमानी तो मत करो। आप खुद सोचो.. 3 महीने तक जब दीवार मौसम की मार झेलेगी.. सर्दी, गर्मी व बरसात झेलेगी तो कुछ तो उस पर असर पड़ेगा। रंग तो हल्का पड़ ही जाएगा।

अगर मेरे रुपए मारने हैं तो मार लो, लेकिन चौधरी साहब जो सामान मैंने लाला की दुकान से उधार उठाया है, उनका तो भुगतान कर दो। मेरी मजदूरी के पांच हजार रुपये काटकर बीस हजार रुपये मुझे दे दो।

मुझ गरीब पर रहम खाओ। मैं कहाँ से लाला का भुगतान करूंगा? मेरे गरीब के पास तो रुपये ही नहीं हैं। तभी तो मजदूरी करता घूम रहा हूँ।

चौधरी साहब पर उसकी बातों का कोई फर्क ना पड़ा। बेचारा अमित रोता हुआ चला गया। इस तरह चौधरी साहब ने ईंट वालों की तरह, पुताई वाले अमित के भी रुपए मार लिए।

चौधरी साहब की एक जवान लड़की थी। जब उसकी शादी नजदीक आयी तो उन्होंने बारात का खाना बनाने के लिए ढेर सारा सामान किराना स्टोर से उधार ले लिया। एक लाख रुपये के सामान के एवज में मात्र बीस हजार रुपये ही दुकानदार राजू को दिये।

दुकानदार राजू ने चौधरी को सामान इसलिए उधार दे दिया था क्योंकि चौधरी अक्सर उसके यहां से सामान खरीदता था। चौधरी देखने में और बातों में उसको बड़ा भला इंसान लगा। चौधरी की बातों में राजू को ईमानदारी नजर आयी थी। दुकानदार राजू को यह पता था कि उसके पास धन-दौलत, जमीन-जायदाद की कोई कमी नहीं है, इसलिए आसानी से उसके रुपये मिल जाएंगे।

अपने उधारी के रुपयों को लेकर वह निश्चिंत था, आश्वस्त था। उसे चौधरी साहब की बेईमान नीयत का पता नहीं था। अपनी आदत के अनुसार चौधरी साहब बेटी की शादी के बाद राजू की दुकान के सामने से नज़रे बचाकर गुजरने लगे। एक दो बार राजू ने उनको रुपयों के लिए टोका।

वे हर बार ‘जल्द ही रुपए दे दूंगा’, ‘तुम्हें रुपये मरने वाले नहीं है’ ‘क्या मैं क्या चोर लगता हूँ’? ‘गन्ने का पेमेंट आने वाला है, रुपए मिलते ही सबसे पहले आपके रुपए दूंगा’, ‘अभी दिक्कत में हूं, जल्द ही भुगतान कर दूंगा’, पूरा घर अभी बीमार पड़ा है, अगले सप्ताह दे दूंगा’ इत्यादि ऐसी बातें बोल-बोलकर चौधरी साहब ने एक साल से ज्यादा का समय खींच दिया, लेकिन रुपए नहीं दिए।

इस दौरान राजू ने चौधरी के घर के भी खूब चक्कर काटे। थक हारकर जब उनको लगने लगा कि चौधरी ऐसे रुपये नहीं देगा तो उन्होंने अपने बड़े लड़के रवि को चौधरी साहब के बारे में बताया।

रवि झगड़ालू किस्म का गुस्सैल व्यक्ति था। उसे गलत बात पसन्द नहीं थी। रवि ये सब सुनकर आग बबूला हो गया। उसने अपने पिता को हिदायत दी कि वे उधारी के चक्कर में ज्यादा न पड़ा करें।

दुकानदार राजू, चौधरी को उधार सामान देकर पछता रहा था। मात्र हज़ार-दो हज़ार के लालच में उसने अपने काफी रुपये फंसा दिए थे।

अगले दिन सुबह 5 बजे के लगभग राजू के बड़े बेटे रवि ने चौधरी के घर पहुंचकर दरवाजा जोर-जोर से खटखटाया। चौधरी की घरवाली ने दरवाजा खोला और रवि से पूछा-

“आप कौन हो? इतनी सुबह-सुबह क्यों आए हो?”

“मैं रवि हूँ। दुकानदार राजू का लड़का। मैं उधारी के रुपये लेने आया हूँ। चौधरी साहब को बुलाओ। मुझे उनसे बात करनी है।”

“कौन राजू? कौन से उधारी के रुपयों की बात कर रहे हो?”

“ज्यादा भोली मत बनो। ऐसे पेश आ रही हो जैसे कुछ जानती ही न हो?? सामान लेने के दौरान तो सब याद रहता है। जब देने का नंबर आया तो कौन हो? बहुत बढ़िया..” रवि तेज आवाज में बोला।

“यहां तमाशा मत करो। मेहमान आए हुए हैं। चौधरी साहब घर पर नहीं है। फिर कभी उनके सामने आना। अब तुम यहां से चले जाओ।” चौधरन बोली।

रवि चीखकर बोला-
“मैं क्या यहां भीख मांगने आया हूँ? क्या मैं घर से ठाली हूँ? न तो मुझे और न ही मेरे पिताजी को रोज-रोज तुम्हारे घर आना-जाना पसंद है। अगर आपको इज्जत ही इतनी प्यारी है तो चुपचाप हमारे रुपए दे क्यों नहीं देते?

बार बार चक्कर क्यों लगवा रहे हो सवा साल से? मेरे रुपये दे दो। मैं रुपए लेकर चुपचाप चला जाऊंगा। तुम लोगों को गरीबों के रुपये मारते हुए बिल्कुल भी शर्म नहीं आती। बार-बार चक्कर लगवाते हो। चौधरी के जैसा जलील इंसान मैंने आज तक नहीं देखा।”

शोरगुल सुनकर चौधरी के घर से एक व्यक्ति बाहर आया। उसने गुस्से से रवि से कहा-

“सुबह-सुबह आप इस इस तरह की कैसी बातें कर रहे हो? कौन हो तुम?”

“श्रीमान जी, यह मेरे और इनके बीच का मामला है। आप न ही बोलो तो अच्छा है। मैं आपको नहीं जानता और न ही आप मुझे जानते हैं।”

“मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर क्या बात है जो आप इस तरह आग बबूला हो रहे हो? हो सकता है कि मैं आपकी कुछ मदद कर सकूं?”

“अगर आप जानना ही चाहते हो तो सुनो। चौधरी साहब ने अपनी बेटी की शादी में हमारी दुकान से 1 लाख का सामान उधार उठाया था। बदले में मात्र बीस हजार रुपये दिए थे। बाकी बचे हुए अस्सी हजार रुपए बेटी की शादी के बाद देने का वायदा किया था।

इनकी बेटी की शादी को 1 साल से ज्यादा का समय हो गया है। सुना है कि चौधरी नाना भी बन गए हैं। मेरे पिता इनके घर के चक्कर लगा लगाकर थक गए परंतु इन्होंने हमारे रुपए अभी तक नहीं दिए। बताओ सर ऐसी स्थिति में गुस्सा न आये तो क्या हो?” रवि गुस्से से बोला। उसकी आवाज में तेज था।

“आपका गुस्सा जायज है। पहले आप शांत हो जाइए। इस तरह चीख कर बात मत कीजिए। आपको एक सप्ताह के अंदर आपके रुपए मिल जाएंगे। आप यहां से चले जाइये।” वह व्यक्ति बोला।

“मैं आपकी बात का कैसे यकीन करूं?

“मैं आपको अपना मोबाइल नंबर दे रहा हूँ। इसको नोट कर लो। अगर एक सप्ताह में भी आपके रुपए नहीं मिले तो मैं खुद आपके रुपए देने आपके पास आऊंगा।”

“आप हो कौन? आप इतनी मेहरबानी क्यों कर रहे हैं?” मैं आप पर कैसे यकीन करूं? आप इन लोगों को जानते नहीं हो। इन्होंने एक साल तक रुपये नहीं दिए, आगे दे देंगे। इस बात की क्या गारंटी है? कहीं आपको जेब से रुपए भरने न पड़ जाएं?” रवि ने अपनी बात रखी।

“मैं इनका दामाद संजीव हूँ। मैं आपको वचन देता हूँ। आपने इतना इंतजार किया है तो एक सप्ताह और कर लो। यकीन करो, आपके रुपये आपको मिल जाएंगे।” उनके दामाद संजीव से इस तरह की बातें सुनकर रवि पूरी तरह आश्वस्त होकर चुपचाप अपनी किराना दुकान पर चला गया और सारी बातें अपने पिता राजू को बताईं।
अगले दिन सुबह 10:00 बजे के लगभग चौधरी गुस्से में लाल-पीला होकर राजू की दुकान पर आया। बाकी बचे हुए अस्सी हजार रुपए देकर बोला-

“यह पकड़ो, अपने रुपए। अपने लड़के रवि को समझा देना। कमीना, मेहमानों के सामने बदतमीजी करके आया है। पूरे मोहल्ले में हंगामा किया है उसने। अगर कल मुझे मिल जाता तो उसकी अक्ल ठिकाने लगा देता।”

“तुम उसकी अक्ल ठिकाने लगाने वाले होते कौन हो? सारी गलती तुम्हारी खुद की है और बता मेरे लड़के की रहे हो। रवि को मैंने ही तुम्हारे घर भेजा था। तुम्हें खुद पर शर्म आनी चाहिए। एक तो हमने तुम्हारी मदद की और ऊपर से तुम ही हमारे रुपये मार कर बैठ गए। अगर तुम समय से हमारे रुपए दे देते तो हम ऐसा गंदा काम ही क्यों करें? हमें यह सब करना अच्छा नहीं लगता, लेकिन तुम जैसे लोग हमें बेशर्म बनने पर मजबूर करते हैं।”

राजू से फटकार सुनकर चौधरी चुपचाप वहां से खिसक लिया। लोग सही कहते हैं कि दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिए तभी उसको अक्ल आती है.. क्योंकि जब सीधी अंगुली से घी ना निकले तो अंगुली टेढ़ी कर ही लेनी चाहिए।

लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा

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