शायद हम बच्चे हो गए

शायद हम बच्चे हो गए

शायद हम बच्चे हो गए

 

शायद हम बच्चे हो गए

शायद अब हम बच्चे हो गए

      क्यूंकि

     अब बच्चे बड़े हो गए….

अब न सुबह जल्दी

      उठने की हड़बड़ी…..

न जल्दी खाना

    बनाने की फरमाइशें….

न बजट की खींचातानी

   न कल की चिंता…..

 न तर्क करता कोई

     न ज़िद करता कोई……

घर सुन्दर और बड़ा हो गया

      हर चीज़ सलीके से रखा गया…..

यादें एल्बम में

      सिमट कर रह गयी…..

सुकून की बातें

       अब होने लगी…..

 मन में दबी हसरतें

      बारी बारी पूरी होती गयी…..

 जीवन के  संघर्ष का दौर

      हँसते हँसते गुजर गया…

शायद अब धीमे धीमे

     बचपन की तरफ जाने लगे….

       क्योंकि

अब बच्चे बड़े हो गए हैं

          फ़िक्र जो किया करते थेउनकी…

अब हमारी वो वैसे ही

      करने लगे….

 

?

No description available.

लेखिका: अर्चना तिवारी

 

यह भी पढ़ें :

बारिश की बूंदें

 

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *