Shanti parva kavita
Shanti parva kavita

शान्तिपर्व

( Shanti Parva )

 

 

करबद्ध निवेदन है तुमसे, अधिकार हमारा वापस दो।

या तो प्रस्ताव सन्धि कर लो,या युद्ध का अब आवाहृन हो।

 

हे नेत्रहीन कौरव कुल भूषण, ज्ञान चक्षु पर केन्द्रित हो।

या पुत्र मोह का त्याग करो, या भरत वंश का मर्दन हो।

 

मैं देवकीनंदन श्रीकृष्ण, पाण्डव  कुल  का  संदेशा ले।

आया हूँ शान्तिदूत बन कर, प्रस्ताव मेरा स्वीकार करो।

 

हम बार्णाव्रत को भूल रहे, ध्रृतक्रीड़ा को भी माफ किया।

पांचाली का वो वस्त्र हरण,हरि के कहने पर साफ किया।

 

यदि पंच ग्राम दे करके भी, यह युद्ध अगर टल जाता है।

तो हे  राजन  समझो  की तेरा, पाप सभी मिट जाता है।

 

यद्धपि की शान्ति असंभव है,पर आखिरी युक्ति इसे समझो।

या तो प्रस्ताव सन्धि का लो,या युद्ध का फिर आवाहृन हो।

 

यदि युद्ध टले टल जाता तो, हरि युद्ध नही होने देते।

हुंकार दबा लेते मन में, पर  महाभारत ना होने देते।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

??
शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

यह भी पढ़ें : –

लक्ष्मण रेखा | Laxman rekha kavita

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here