सुमन सिंह याशी की ग़ज़लें | Suman Singh Yashi Poetry

नहीं बदलते हैं

चुभन से ख़ार से रस्ता नहीं बदलते है I
अज़ा इमान हमारा नहीं बदलते हैं II

किसी भी राह अगर चल पड़े तो चलते हैं I
तमाम रंज इरादा नहीं बदलते है II

शजर -ए प्यार ओ यकीं सूखता तो सींचेगे।
निग़ाह फ़ेर नज़ारा नहीं बदलते है II

किसी के वास्ते होंगे न मो’तबर वो जो I
हवा के साथ ठिकाना नहीं बदलते हैं II

हजार बात ज़माना अगर बनाये तो I
हुज़ूर रोज ज़माना नहीं बदलते हैं II

बदल गया जो बदलते दहर में, मत सोचो I
भुला दो, वक्त का सांचा नहीं बदलते हैं II

शरीक-ए राज बनाया किसे? नहीं सोचा !
महक से नाग ज़रा सा नहीं बदलते हैं II

शब्द
अज़ा – दर्द भरी बात, कष्ट, यातना
मो’तबर– सम्मनित, आदरणीय, सम्मान के क़ाबिल
रंज– तकलीफ़
ख़ुलूस – निष्ठावान , वफादारी
दहर – समय
शजर – पेड़

अच्छा नहीं होगा

चलोगे राह ऐसी तो सिला अच्छा नहीं होगा ।
नतीजन बाद में ख़ुद से गिला अच्छा नही होगा।।

रुकी राहें, सितम बेहद हुऐ तो दर्द का शोला।
बग़ावत का बनेगा ज़लज़ला अच्छा नही होगा ।।

दिखाई दे रहा जो दर्द-ओ-ग़म उसकी निगाहों में।
यकीनन उसका कोई फैसला अच्छा नहीं होगा।।

अजी जब याद करना, भूलना दोनों हुए मुश्किल ।
बनेगा हाल तब ये आबला, अच्छा नहीं होगा।।

सताओ, आजमाओ, रूठ जाओ,ठीक पर पैहम
फरेबी बेहिसी का सिलसिला अच्छा नहीं होगा।

न आओ पास भी इतने, ज़रा सा फर्क खल जाए।
बढ़े जो फिर मुसलसल फ़ासिला अच्छा नहीं होगा ।।

सिकंदर क्या बनेंगे जो न देखें मुश्किलें ‘याशी,
मगर दुश्वारियों का काफ़िला अच्छा नहीं होगा

सुमन सिंह ‘याशी’

वास्को डा गामा,  ( गोवा )

शब्द
बजा.. ठीक है
पैहम.. लगातार, बार बार
मुसलसल .. लगातार
फर्क.. अंतर, दूरी
आबला.. फोड़ा, छाला

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