सुन खरी-खरी!

( Sun khari-khari ) 

 

खामियाँ निकालने में साँसें तेरी नप जाएँगी,
रख होश-ओ-हवास काबू में,साँसें उखड़ जाएँगी।
न वक़्त है तेरे काबू में और न ही दिल है काबू में,
किसी प्रतिशोध में खूबसूरत दुनिया उजड़ जाएगी।

न तेरी मुट्ठी में जमीं है,न आसमां,न चाँद-सितारे,
एकदिन तेरे जिस्म से ये रुह भी निकल जाएगी।
कागजी-कश्ती जैसे जिस्म पे ये ग़ुमान कैसा?
पड़ते ही वो चंद बूँद मौत की ये गल जाएगी।

टूट जाती हैं दिल की रगें,पाप का बोझ उठाने से,
ये बहारों की तेरी शाम आखिर ढल जाएगी।
अगली सुबह देखने को मिलेगी, ये तय नहीं,
तेरी शान-ओ-शौकत सदा के लिए मिट जाएगी।

तख़्तो -ताजों का हिसाब तूने कर लिया होगा,
तब तो सादगी भरी बात दिल में उतर जाएगी।
परछाईं भी छोड़ देती है साथ, सुन खरी -खरी,
दिनभर बित्ते से नापी संपत्ति यही रह जाएगी।

तेरा घमंड,तेरा लालच,नचा रहे हैं बंदर-सा तुम्हें,
परवरदिगार से मिलने की वो चाह रह जाएगी।
कभी मत छिड़क किसी के जख्मों पे नमक तू,
दुआवों की गोंदभराई की रस्म तेरी रह जाएगी।

तू अपने रंज घड़ी को भी गुजार दे खुशी -खुशी,
खींच पत्थर की लकीर जिन्दगी संवर जाएगी।
बन बे-ऐब का आदमी,सजा दे इल्म से जहां को,
नहीं, तो आसमां वाली जमीं तेरी छूट जाएगी।

 

लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक)

यह भी पढ़ें :-

पर्यटन | Paryatan

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here