किताबों से सदा वो आ रही थी
किताबों से सदा वो आ रही थी किताबों से सदा वो आ रही थी ग़ज़ल यादों की कोई रो पड़ी थी दयारें आ रही थी नफ़रतों की मुहब्बत की कली मुरझा रही थी खबर दिल को नहीं थी बेवफ़ा है वफ़ा की सोचकर राहें चुनी थी वो आंखें देखती है…
किताबों से सदा वो आ रही थी किताबों से सदा वो आ रही थी ग़ज़ल यादों की कोई रो पड़ी थी दयारें आ रही थी नफ़रतों की मुहब्बत की कली मुरझा रही थी खबर दिल को नहीं थी बेवफ़ा है वफ़ा की सोचकर राहें चुनी थी वो आंखें देखती है…
आँखों की नमी मुहब्बत को जाहिर कर देता है आँखों की नमी मुहब्बत को जाहिर कर देता है इंसान को मुहब्बत भी ज़रा कायर कर देता है यह नहीं है की में तुझसे बात करना नहीं चाहता बात बात पर तेरी आँखें मुझको बाहिर कर देता है तेरे साथ, तुझ से…
दुख की घङियां सुखों में यूं ढल जाती है दुख की घङियां सुखों में यूं ढल जाती है। जैसे फूलों में कलियां बदल जाती है ।। आँधियों में अग़र वो खुदा चाहे तो। फिर से बुझती हुई लौ भी जल जाती है।। हैं नादां चाहे जो शोहरत को वो । फूल …
सादगी तेरी और तेरी जवानी सादगी तेरी और तेरी जवानी। है दिलों को लगती ये कितनी सुहानी।। यूं ही रूठ जाना खुद ही फिर मान जाना। उम्र होती मासूम सी ये दीवानी ।। ख्वाब यूं ही बुनती किसी की ना सुनती। खूं में है इसके कुछ अज़ब सी रवानी।। अंखियों…
दिल-ए-नादान दिले नादान तुझे कहीं का रहने न दिया। ये कौन जाग जाग कर हमें सोने न दिया।। मुद्दतों बाद नज़र आयी थी बहार मुझे, बज्म में राज खुल जाने का डर रोने न दिया।। लोग नहला धुला के कब्र तक पहुंचा आये, मेरे घर में मुझे कुछ देर भी रहने…
हाँ जीस्त ख़ुशी से ही रब आबाद नहीं करता हाँ जीस्त ख़ुशी से ही रब आबाद नहीं करता हर रोज़ ख़ुदा से फ़िर फ़रयाद नहीं करता हाँ शहर में होते कितने क़त्ल न जाने फ़िर इक मासूम को वो जो आजाद नहीं करता मैं पेश नहीं आता फ़िर उससे अदावत से…
रोज दिखाये वो नखरे है रोज दिखाये वो नखरे है! बातें मेरी कब सुनते है सूखे फूल मुहब्बत के अब ऐसे उल्फ़त में लूटे है नफ़रत की दीवारे है अब रिश्ते प्यार भरे टूटे है पहले प्यार कहा था उसने अब बातें से वो बदले है भूल गये शायद…
माना कि हज़ारों ग़म है माना कि हज़ारों ग़म है हौंसला क्यूं त्यागे । छाया जो भी अंधेरा कम रौशनी के आगे।। अश्कों को यहां पीकर है मुस्कुराना पङना। ये राज वो ही जाने जिगर चोट जब लागे।। सब कर्म बराबर कर ले सह के ये ग़म सारे। ग़म ही ये …
वो पूछते हैं उस खुदा से वो पूछते हैं उस खुदा से खामियाँ क्यूं खूब है। हम भूलते है उसकी मेहरबानियाँ भी खूब है।। हर एक खुशी मिलती नहीं जीवन में हर इक शख्स को। इतिहास भी इसका गवाही देता है कहानियाँ भी खूब है।। है आग भङकाती है तो…