ठगे गए जज्बात | Thage Gaye Jazbaat
ठगे गए जज्बात
( Thage Gaye Jazbaat )
हो असली इंसान की, कैसे अब पहचान।
दोनों नकली हो गए, आंसू और मुस्कान।।
कैसा ये बदलाव है, समय है उलझनदार।
फसलों से ज्यादा उगे, सौरभ खरपतवार।।
सुनता दिल की कौन है, दें खुद पर अब ध्यान।
सब दूजों पर जज बनें, सुना रहें फरमान।।
कुछ जीते जी हैं मरे, कुछ मरने तक साथ।
रिश्तों की भी उम्र है, जब तक पकड़े हाथ।।
हिंदू बनना किसलिए, बने क्यों मुसलमान।
अंश सभी इंसान के, असल बनो इंसान।।
होता है ये हादसा, सौरभ अब तो चौक।
जिम्मेदारी बच रही, मरे रोज बस शौक।।
समझदार के इस तरह, ठगे गए जज्बात।
समझदार हो इसलिए, मानो सौरभ बात।
डॉo सत्यवान सौरभ
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,
हरियाणा