Toote hue Sapne

टूटे हुए सपने

( Toote hue sapne )

 

तोड़ता भी रहा जोड़ता भी रहा
टूटे सपनों को मैं रात भर
खुली आंख जब सहर हुई
टुकड़े ही टुकड़े थे बचे सामने
उम्र भीं काबिल न थी जोड़ पाने में

बहत्तर छेदों की गुदड़ी थी मिली
सिल सिल कर भी सिलते रहे
जर्जर दीवारें भी देती साथ कितना
छल्ले छूटते रहे हम लीपते रहे
आया भी वक्त जब ईंटों का
गली भी जाकर शहर से मिल गई

कहें भी क्या आबोहवा के मिजाज को
निगल ही लिया जिसने लिहाज को
पथरा गई आंख निहारती राह को
मूंदने लगी वो भी अब ना चाह के
सुकून भी रहा की ,रही धूल आंखों में भले
शहर मे भी नया मकान बन गया है

हर मौसम मे फूल नही खिलते
हर चमन मे बहार भी कहां आती है
इन झुर्रियाए चेहरे पर भी हंसी कैसी
चाहकर भी अब मुस्कान कहां आती है
बेला भी आ गई है अब चलाचली की
नए घर की तलाश मे निकलना भी होगा

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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