Tum Kyon Nahi Aate
Tum Kyon Nahi Aate

तुम क्यों नहीं आते

( Tum Kyon Nahi Aate ) 

 

पलाश के फूल भी
मौसम आने पर खिल जाते हैं
धरती और अंबर भी
एक वक्त पर मिल जाते हैं
मगर हम तुम क्यों मिल नहीं पाते ?
मन के फूल क्यों खिल नहीं पाते ?

आओ देखो !
बाग़ों में महुआ महक रहा है
उसका रस टपक रहा है
तुम आ कर ,
प्रेम रस क्यूँ नहीं टपकाते
मेरे मन के पपीहे को
स्वाति बूंद क्यूँ नहीं पिलाते

कहाँ हो
कहाँ हो

तुम मेरी प्रतीक्षा का,
धैर्य का इम्तिहान ले रहे हो
तुम नहीं जानते
तुम मेरी जान ले रहे हो

बारह महीने भी साल में बदल जाते हैं
उदासियों के बादल भी ढल जाते हैं
बारह साल के बाद कुंभ का मेला भी तो लग जाता है
मेरे दिल के अरमानों का मेला क्यों नहीं लगता ?
मेरे मन से उदासी का बादल क्यूँ नहीं ढलता ?
दुनिया में
हर अपराध की एक सज़ा निर्धारित है
अगर मुझ से अबोधता में कोई अपराध हुआ है
तो फिर
तुम उस का ढंड दे कर
मुझे इस कशमकश से निकालते क्यूँ नहीं ?
अपनी सुडौल बाहों का सहारा दे कर
संभालते क्यूँ नहीं ?

मुझे क्यों नहीं बताते
मेरा अपराध क्या है ?
बे – सबब रुठे रहना
क्या यही वफ़ा है ?

मेरी कितनी सज़ा बाक़ी है
आओ और बता दो
मेरी कल्पनाओं की दुनिया
फिर से सजा दो
मेरे दिल का आँगन रीता पड़ा है
मेरा हार श्रंगार फीका पड़ा है
बहारें भी लौट आती हैं
सावन भी तो लौट आता है
प्यासी धरती को तृप्त करने
मेरा मन ही अतृप्त क्यूँ है ?

तुम मेरी प्रतीक्षा का मूल्यांकन करो
अपनी मीरा की
विरह वेदना हरो।

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक
( लुधियाना )

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