
पूरे हक़ के साथ
( Poore haq ke saath )
पूरे हक़ के साथ ये ग़म किया गया है
तेरे बाद से नशे को कम किया गया है
ज़हन से हुस्न का दस्तरस किया गया है
फिर तेरे होने का वेहम किया गया है
जो तेरे होते हुए करना मुमकिन ना था
आज वह पैग़ाम-ए-आलम किया गया है
मुझे फ़िक्र किस बात की रेह गयी अब अगर
तेरे हिज़रत में भी चैन से दम किया गया है
खुदा की कसम ज़िक्र नहीं किया गया तुम्हारा
बस सुनकर नाम आँखों को नाम किया गया है
अगर धोके से भी पद गयी चैन, आ गया नींद
तो नहीं कोई इश्क़-ए-आज़म किया गया है
अज़ाब साया है ‘अनंत’ , ना वह रोकता है कभी
ना में रिहाई चाहता हूँ, बस मसअला से रम किया गया है
शायर: स्वामी ध्यान अनंता
( चितवन, नेपाल )
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