उसूल | Usool
उसूल
( Usool )
हर हर मोड़ पर तुम्हें साथी नहीं मिलेंगे
परिचितों के कुनबे में
पहचान तुम्हें ही बनानी होगी
कुछ के साथ तुम्हें चलना होगा
और कुछ को अपने साथ चलाना होगा
जन्म से पहले तुम्हें कौन जानता था
शुरुआत तुम्ही ने की थी
कभी मुस्कराकर कभी रोकर
लोग जुड़ते गए तुमसे
तुम भी जुड़ते गए लोगों से
सहायक बनोगे तो सहायता पाओगे
तुमसे अलग कोई नहीं
अपने काबिल बनाना होगा
उनके काबिल बनना होगा
सारा खेल लेनदेन का ही है
किसी से कोई कम स्वयं को नहीं आंकता
मगर एक बात यह भी है कि
कठोर शाख टूट जाती है
लचीली डाली झुक कर भी खड़ी हो जाती है
कुछ उसूल है जिंदगी के
उनसे अलग जीवन नहीं जी सकते
जीवित भले रह लो
( मुंबई )