Vyarth ki Soch
Vyarth ki Soch

व्यर्थ की सोच

( Vyarth ki soch ) 

 

लक्ष्य सर हटकर अलग
एक दिन की भी व्यर्थ सोच
कर सकती है भ्रमित आपको
बहक सकते हैं गैर की संगत से
बदल सकती है मार्ग की दिशा
और आप जा सकते हैं अपने उद्देश्य सर दूर

आपकी प्रमुखता आपसे नही
आपके कर्म से ही होती है
मार्ग की बाधाओं का रूप निश्चित नही होता
पल भी मे ही घट जाती हैं घटनाएं

जरूरी है की ध्यान मे भटकता न हो
मुश्किलि लक्ष्य से ज्यादा
बाधाओं को पार करने मे ही होती है

हम सभी खड़े हैं वक्त के हासिये पर
कदम बहके या हैं फैसलें
धराशायी होने मे वक्त नही लगता

आप संघर्ष चाहे जितना कर लो
लोगों को मतलब तो आपके परिणाम से है
और परिणाम भी दागदार न हो
क्योंकि
प्रसंशक ही आपके उपहास मे
आगे ही रहते हैं

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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