मरने की तैयारी करो
मरने की तैयारी करो

मरने की तैयारी करो

( Marne ki taiyari karo )

उस्ताद सेम को कुछ दिनों से सीने में दर्द हो रहा है। उनका सीने का दर्द इलाज से ठीक नहीं होता वरन् जब वे ही किसी का इलाज कर दे तो उनका दर्द ठीक हो जाता है।

वे अभी कुछ दिन पहले एक छोटे गंुडे से दो हाथ करके उसका मकान हड़प चुके है, अब उन्हे ंअमीन खां का मकान कंकड बन कर आंखों में खटक रहा है।

हर गलत मामलें की हां में हाॅ-हाॅ मिलाने वाले विलायत भाई को उन्होंने याद किया। बिलायत खाॅ तो चाकू में धार करते, ही रहते है फौरन मिलने पहुॅच गए और जय ए.के.र्फोर्टी रायफल कह कर कोर्नीश बजाई ।

तो उस्ताद सेम ने जय राकेट लांचर कर जवाब दिया और उन्हें अपनी कुर्सी से सरक कर जगह दी। उस्ताद सेम ने सूचना दी कि अमीर खां का मकान ऊॅचा होता जा रहा है उसकी मीनारें खटकने लगी है।

बिलायत खां ने जवाब दिया “बड़े भाई, उसके घर में नायाब हीरे है जिन पर मैडम बिलायती का दिल आ गया है।” “वही तो” दादा सेम ने जवाब दिया “खूबसूरत चीजे बुरे इरादे वालों के पास ही अच्छी लगती है।” कब हमला बोला जाए?

बिलायत भाई बोले “अभी नहीं, पहले उसे बदनाम करने की कोशिश करते है। मसलन उसका नाम किसी महिला के साथ जोड़ा जाए या सट्टा या जुआं खिलाने का आरोप उस पर लगाया जाए फिर हमला बोलेंगे।

सैम दादा बोले, नहीं, कोई आरोप लगाने की भी अब जरूरत नहीं है पूरी दुनिया जान गई है कि हम जब किसी पर झूठे आरोप लगाते है तो हमारा इरादा उसे निगलने का होता है। इस बार उसे सीधे ही गटक लेते है। पानी बाद में पी लेंगे।

बिलायत भाई बोले “दादा उसे बुला कर पहले धमकाते है यदि धमकाने से ही घर खाली कर दे तो मार पीट की क्या जरूरत है ?

सैम दादा ने घुड़का, “अच्छा गोया तुम उससे मकान नहीं आर्शीवाद या परसाद मांग रहे हो जो वह तुम्हें बगैर हील हुज्जत के दे देगा । अरे पीठ पर दो लात मारो और बाहर करो।

जब हमारा दिल उसके मकान पर आ गया तो वह हमारा हो गया। तुम कहां मध्य युग में रह रहे हो जहां आत्मा की आवाज नाम अंकुश हुआ करता था। तब भी बिलायत खां ने टोका “ठीक है ठीक है कभी कभी गरीब बाप की बात भी मान लेना चाहिए” सेम गंुडा ने सहमत होते हुए कहा।

दोनो ने अमीर खां को बुला भेजा । अमीर खां समझ गया कि मौत ने याद किया है और  उसके दिन पूरे हो चुके है ।

फिर भी ऊपर वाले (यदि उनसे ऊपर कोई है तो) को याद करता हुआ उनके पास पहुंचा, सैम ने नियमावली पर पैर रख का कहा “अमीर खां तुम्हारा मकान बहुत ऊॅचा हो चुका है अब खाली करो।”

अमीर खां ने जवाब दिया, “उस्ताद अगर खटकता है तो ऊपरी मंजिल गिरवा दॅू। ”  “नही! सैम ने जवाब दिया, अब गिरवाने से काम नहीं चलेगा, मालूम पड़़ा है कि तुम संस्कृति की स्मगलिंग करते हो अतः हमें संस्कृति खोजने के लिए तुम्हारी हत्या करना पड़ेगा और मकान हासिल करना पड़ेगा।”

“आप जान बक्श दें और मकान वैसे ही ले ले मैं मय फर्नीचर के मकान खाली कर दंूूगा और अज्ञात वास में चला जाऊंगा । अमीर खां ने काॅप कर कहा।

“नहीं”, विलायक भाई बोला “हमें तुम्हारी हत्या तो करनी ही पड़ेगी। पिंडारियों की तरह ही बगैर मेहनत किए लूटने की आदत हमें नहीं है, अतः तुम घर जाओ और मरने की तैयारी करो।

“मगर पूरी दुनिया के हूजूरो” अमीर खां बोला मैं संस्कृति को जानता तक नहीं उसके स्मगलिंग का प्रश्न ही नहीं उठता “जवान मत लडा़” हमें मालूम है कि अफगान खाॅ की तरह तुम्हारा भी संस्कृति से कोई वास्ता नहीं है होता भी तो हमें तुम्हारे मकान से मतलब है संस्कृति से नहीं “नाऊ गेट लास्ट” अमीर खां ने धौस जताई।

इसके बाद एक पखवाड़े तक उस मकान में दोनो गुंडो का निःवस्त्र राक-एन-रोल होता रहा । कमजोर मकान मालिक कानून की दुहाई देते रहे और ताकतवर गुंडे ताकत के हिसाब से सामान बांॅटने में लगे रहे।

एक माह पश्चात सेम गुंडे ने फिर विलायत भाई को याद किया। विलायत भाई मुंह से खून पोछते हुए फिर पहुंचे ।

सेम बोला, “हमें अंदाज नहीं था कि यहां मकानों में लोगो ने इतना कुछ छिपा रखा है अब अगले मकान को लूटने की तैयारी करो हमें चुप नहीं बैठना है हम दुनिया से अन्याय मिटा कर ही दम लेंगे। जय मानवता, जय मानव अधिकार, जय प्रजातंत्र,” विलायत भाई ने जवाब दिया।

 

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लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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