Vijayadashami kavita
Vijayadashami kavita

विजयादशमी

( Vijayadashami kavita )

 

हर हाल में हर काल में अभिमानी रावण हारा है
अहंकार  का  अंत हुआ सच्चाई का उजियारा है

 

विजयदशमी  विजय  उत्सव  दशहरा पावन पर्व
मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र प्रभु पर करते सभी गर्व

 

रामराज्य  में  मर्यादा का फर्ज निभाया जाता था
रामराज में खुशहाली न्याय धर्म निभाया जाता था

 

दशानन का दंभ तोड़ राम ने रावण को मारा था
सिंधु  पर सेतु  बनाया  भूमि  का भार उतारा था

 

विश्वनाथ की कर स्थापना शक्ति का ध्यान किया
शक्ति बाण से रावण का चूर चूर अभिमान किया

 

काला  धन  काली  करतूतें आज खूब आबाद हुए
दिनोंदिन नैतिकता लूढ़की घटित कई अपराध हुए

 

धनबल भुजबल से देखा छीनते हुए निवाला है
कलयुग  काल में  रावण  राज  बोलबाला  है

 

आस्था विश्वास प्रेम घट घट में डगमगा रहा
लूट खसोट झूठ फरेब संस्कारों में आ रहा

 

पाखंडी धर्मगुरुओं ने जन आस्था ढहा डाली
भ्रष्ट आचरण लीन होकर मर्यादाएं गंवा डाली

 

फन फैलाए इस रावण का श्रीरामजी अंत करो
मधुर  प्रेम  सद्भाव  घट  में स्थापित तुरंत करो

 

विजय उत्सव हर्ष खुशी उल्लास उमंग जगाएगा
घर-घर दीप रोशन हों कोना-कोना जगमगाएगा

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कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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