वृक्ष हमारे तुम संरक्षक हो
वृक्ष हमारे तुम संरक्षक हो
वृक्ष हमारे तुम संरक्षक हो
हरे भरे हो खड़े हो सीना ताने।
भव्य शस्यश्यामल है रूप तिसारा,
लगते कोई हमारे शुभ चिंतक हो।
घने घने हरे भरे पत्तों से सुशोभित,
थलचर -नभचर को आश्रय देते-हो।
शीतल छांव तुम्हारी देती आश्रय,
हर प्राणी हर चर अचर को।
सकल ब्रम्हांड में हो जय जयकार तुम्हारी,
वृक्ष तुम मित्र हो, है तुम्हारी शान निराली।
फल, साग व फूल देते खाने को,
पत्ते खाने देते तुम पशुओं और कीट पतंगों को।
मत काटो को कोई इनको,
देते रहो सदा पानी इनको।
पर्यावरण की संजीवनी है यह,
मौसम को भी रखते वश में।
तुम ही वर्षों लाते, देते जल-जीवन -जग को,
रहते तुम्हीं से हरित वन उपवन।
आकर्षित करते जन के मन को,
लगते लुभावने मत काटो इनको।
वृक्ष हमारे तुम संरक्षक हो,
हरे भरे रहो सदा सीना ताने।
श्रीमती उमेश नाग
जयपुर, राजस्थान
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