मुकदमा कंप्यूटर पर
मुकदमा कंप्यूटर पर

मुकदमा कंप्यूटर पर

( Vyang : Mukadma computer par )

 

भोपाल गैस त्रासदी की बरसी मंह बाये मातम के रूप में खडी रहती है । शोक, संवेदनाएं और श्रद्धांजलियां अपनी जगह है मगर पूरे घटनाक्रम पर प्रस्तुत है यह व्यंग्य ।

जय किशन जी का एक कारखाना चूहा मार दवा बनाने का भी था । उन्होने उसमें इतनी चूहा मार दवा इकट्ठी कर ली थी जितने कि पूरे देश में चूहे भी न थे। आखिरकार वही हो गया जो न होना था। दवा लीक कर गई।

सड़को पर जो चूहा मार दवा ने बहना चालू किया तो आसपास के क्षेत्र में मरे हुए चूहो का ढ़ेर लग गया। जो चूहे किसी तरह पिंजरों से बाहर निकल पाये वे सड़को पर कुचल दिये गये।

सब कुछ चुपचाप दफन हो जाता मगर बुरा हो कुछ लोगों का जिन्होंने चूहों के मरने पर तूफान उठा दिया।

वहां के राजा को अखबार वालों पर वाजिब की गुस्सा आया जिन्होंने चूहों की मौत पर छाती पीटना चालू कर दी फिर छाती पीटने का सिलसिला जो चला तो पत्रिकाओं, सभाओं, टेलीविजनों, और विदेशो तक में पसर गया।

अब चक्रवर्ती कुनमुनाया । उसने पहले तो राज को डांटा फिर कहा कि हमें यह देखना है कि चूहे को ठिकाने लगाने में जो खर्च हुआ है उसका दावा ठीक दो (वह ऐसे ही बोलता था) लोग अपनी छाती पीटना रोककर तुम्हारी पीठ ठोंकना चालू कर देंगें।

यह तय करने के पश्चात कि मुकदमा यहीं चलेगा मुकदमें का आधार बनाना चालू किया गया । राजा के राज में जब आदमियो का इलाज ही चूहों की तरह होता था तो चूहों का रिकार्ड कहां से रखा जाता ?

अतः ऊपरी आमदनी पर चलने वाले सरकारी डाक्टरो ओर कानून दाओं को पन्ने भरने के लिए राजधानी में भर लिया गया।

मगर राजा की तरह ही उसके नौकर थे, उन्हें काम करने की आदत नहीं थी और वगैर रिश्वत लिये तो बिल्कुल नही। ड्राई ऐरिया उन्हें रास नही आया वे खबरचीयों के दफ्तर पहुंच गये।

फिर हल्ला होने लगा। वहां जयकिान इस बात से बहुत खुश हुआ कि चूहों की मौत का मुकदमा उन्हीं के देश में चलेगा इसी खुशी में उसने कम्प्यूटर को इस केस के तमाम डाटा फीड किये तो परदे पर यह फिल्म चालू हो गई।

“तुम्हारा नाम ?“ वकील साहब ने पूछा, “जी, गरीब चंद” – गवाह ने हाथ जोड़कर जवाब दिया

“तुम्हें किसने बतलाया कि तुम्हारा नाम गरीब चंद है ?” वकील साहब ने आक्रमण किया ।

आब्जेक्शन योर आनर” – सरकारी वकील ने जागकर जम्हाई ली ।

“हर चूहे का नाम यही होता है उसे सब गरीब चंद ही कहते है।”

“बहुत खूब” कल सब कहेंगें की जय किशनजी का कारखाना राजधानी में था तो आप मान लेंगें बचाव पक्ष व्यंग से बोला। “तो क्या जयकिशन जी का कारखाना राजधानी में नहीं था ? सरकारी वकील ने अचकचा कर कहा।

यह तो आपको सिद्ध करना है। उसके बाद ही यह प्रश्न उठेगा कि अमुक तारीख को चूहा मार दवा लीक हुई थी या नहीं ?

फिर हम साल पर तारीख पर और महीने पर बहस करेंगे उसके बाद भिन्न प्रकार की चूहामार दवाओं पर बहस करेंगें, अभी तो आपको यह सिद्ध करना है कि उक्त कारखाना क्या है, और कहाॅ है” ?

बचाव पक्ष ने कारखाने के आगे खड़े होकर कहा साल भर बाद बहस आगे सरकी। “तो गरीब दास जी आप कहां रहते है ? बचाच पक्ष के सांड ने पूछा”।

“जी” जय किशनजी के कारखाने के पास “गरीब रिरआया।” मेरे मुवकक्ल के घर के अन्दर ? प्रशन उछाला । “जी नहीं,” उसकी छत पर, “जी नहीं,” तो फिर उसके पास कैसे हुये ? गरीब चुप।

“तो योर आनर यह सिद्ध हुआ कि कथित घटना के दिन जयकिशन जी के पास कोई नही रहता था।” बचाव पक्ष ने एक निर्णय लिखवाया। इस तरह बहस दूसरे साल में घुस गई।

“हाॅ, तो गरीबलाल, “बचाव पक्ष घूमा” जी मेरा नाम गरीब चंद है।”

“कोई फर्क नही पड़ता । गरीब के आगे कुछ भी लगाओ वह गरीब ही रहता है।”

“है, है, है” गरीब चंद ने जवाब दिया ।

“तो गरीब लाल ली” आपने वहां की जमीन पर रहने के लिए पट्टा लिया था ?” जी नहीं।

इतने में आॅख पर पट्टी वाली कुर्सी, बोली “पट्टी से क्या होता है ?”

पट्टी के पीछे क्या है ?

“पट्टी नही पट्टा-योन आनर, जिसके गले में पट्टा नही होता उसका कर्तव्य है कि वह दुम दबा कर भागे । और जिसके गले में पट्टा होता है उसे गुर्राने का हक होता है। “ बचाव पक्ष ने आगे कहा । ” ”अब मैं पैसा, इकट्ठा करने वाले विभाग को तलब करना चाहूॅगा ।”

“इजाजत है आपको हर चीज की इजाजत है । ” हमारे यहां मरने वालों की सफाई का मौके नही दिया जाता है मारने वालों को हर मौके दिये जाते है।”

यहां प्रकाशित कर कुर्सी फिर सो गई। ”तो पटवारी जी” आपने इन चूहों को अतिक्रण हटाने के नोटिस दिये थे । बचाव पक्ष ने सलाह दी। “हाॅ हूजूर इन नोटिसों पर इन चूहो के अंगूठे लगे है। ” रेवेन्यू डिमार्टमेंट जय किशन के पक्ष में बोला ।

“ क्यों बे चूहो, इन नोटिसों की प्राप्ति पर तो तुम्हारे पैर के अंगूठे लगे है।” बचाव पक्ष ने सीने पर प्रश्न अड़ा दिया। “

जी पटवारी साहब, दुर्घटना के बाद आये और इन्होने कहा कि देखा  इन कागजों पर हम तुम्हारी तरह से अंगूठे लगवा देते है तो तुम्हे पैसा मिलेगा । हमने कहां हमें पढ़ना नही आता हुजर । “चूहे समवेंत स्वर में बोले।

मूर्खो । तब पढ़ना नही आता तो हमारे बीच में रहने क्यों आये ? न्यायालय में समवेत स्वर में हंसी के साथ आवाज आई । इस तरह साल पीछे सरकते गये और मुकदमा आगे सरकता गया “ तो घसीटे” घटना के दिन तुम क्या कर रहे थे ।

“जी उस समय दिन नही था रात थी” गरीब बोला

मतलब तुम सो रहे थे । तुम नहीं बतला सकते कि उस रात को क्या हुआ था ।

फटेहाल ने कहा जी गैस रिसी थी गरीब बोला। तुमने गैस देखी थी ? षडयंत्र में पूछा

“ जी गैस दिखती नही हैै”  तब तुम कैसे कह सकते हो कि वह चूहामार गैस थी। गोबर गैस नही थी ? अदृश्य प्रश्न गंूजा ।

चूहा चुप रहा ।

तुम्हारा मुहल्ला गन्दा रहता है ? “ बचाव पक्ष ने कीले ठोकन चालू की । “जी” आस पास सूअर रहते है ? “जी” “कचरा रहता है ?” मक्खी मच्छर रहते है “जी”

“आसपास धूल उड़ती है।” “जी” “इन सब चीजो से तुम्हारा दम नहीं घुटता” “जी घुटता रहता है” अब बचाव पक्ष योर आनर के तरफ मुड़ा ।

“नोट किया जाये योन आनर कि इन चूहो का दम तो घुटता ही रहता है मगर चूुंकि दुर्घटना के दिन प्रशासन की गलती से नही घुटा अतः प्रशासन ने एक व्यापारी पर प्रतिशोध वश यह मुकदमा दायर कर दिया।”

“यौर ओनर, मौत चूहो की हुई है और मुआवजा राजा मांग रहा है यह प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है अतः मेरे मुवक्किल को बाइज्ज्त बरी किया जावें और उन्हे राज्य के हर जिले में गैस चेम्बर बनाने की इजाजत दी जाचे । मैं इन मुकदमों की आखिरी कील आपके हाथों में सौप रहा हॅॅू।”

इसके बाद जयकिशन जी को बाइज्जत बरी कर चूहों की सामूहिक कब्र पर आखिरी कील ठोक कर काजी ने अपने हाथ धो लिये। दस वर्ष बाद चूहामार कारखाना आसपास की झोपड़ियों को निगलकर दुगना मोटा हो गया और हजारों चूहो का श्राद्ध संतुष्टों और असंतुष्टो को साल दर साल मिलता रहा।

हर मौसम लीक होने का मौसम

लीेक अब हिन्दी में ज्यादा और अंग्रेजी में कम उपयोग होता है। “लीक” अंग्रेजी का शब्द है जिसके हिन्दी में मायने होते है छेद, दरार, रिसना, प्रकटन, रहस्योदघाटन इत्यादि । “भारत देट इज इन्डिया” में हर माह कुछ न कुछ लीक होता रहता है अतः भारत कृषि प्रधान न होकर लीक प्रधान देश है।

जुलाई अगस्त में गरीब की छत लीक होती है। पूरी बरसात वह छत ठीक करता रहता है और वह लीक करती रहती है। पूरी बरसात वह विस्तर सरकाता रहता है।

यदि किस्मत से उसके पास मच्छरदानी हुई तो वह पानी से बचने के लिए उसके ऊपर बरतन रख देता है । टपकने वाली छत पर टपका होता है टपके से पानी टपकता है कभी कभी सांप भी टपक जाते है।

सरकारी बिल्डिंग की छते तो बंूदे टपकाने की जगह पानी की धार टपकाती है। बाहर कम, उसके अन्दर ज्यादा पानी गिरता है। और पानी कम, सरकारी छतें ज्यादा पानी गिरती है। हम कर्मचारी भर्तहरी बन जाता है । छत को हाथो का सहारा न दो तो सिर पर छते गिरती है।

दिसम्बर जनवरी में फटी छत से तारे झांकते है और ठण्ड बन्दूक की गोली की तरह जिस्म भेदती है। फटे कोट ठण्ड को जिस्म से दूर रखने में अक्षम होते है।

फरवरी बजट लीक होने का मौसम होता है। बजट लोक सभा में रखे जाने के पहले ही लीक हो जाता है । फिर आरोप प्रत्यारोपो का दौर शुरू हो जाता है। असत्ता रूढ़ दल कहता है कि बजट मन्त्री ने लोकसभा के पहले उद्योगपतियों को बजट लीक कर दिया।

सत्ता, रूढ दल, असत्ता रूढ़ दल के उन सदस्यों पर आरोप लगता है जो पहले सत्तारूढ़ दल थे। असत्ता रूढ़ दल, सत्तारूढ़ दल के असन्तुष्ट धडे, की सराहना करता है।

मालूम नहीं पड़ता कि कौन किसकी तरफ है  इस समय समाचार पत्र, असंतुष्ट घडे़, विरोधी दल, उद्योग पतियों और जनता के आंखों के तारे और सत्तारूढ़ दल की आखों की किरकिरी बन जाते है।

फिर आता है प्रश्न पत्रों के लीेक होने का मौसम । इस समय भी समाचार पत्रों की  चांदी रहती है, मैं तो कहॅूगा की प्लेटीनम रहती है।

समाचार पत्र प्रश्न पत्र लीक भी करते है और विश्वविद्यालयों की बुराई भी। इसे कहते है जिस थाली में खाना उसी में छेद करना। प्रश्न पत्रों के लीक होने का मौसम फरवरी में चालू होता है और जुलाई तक चलता है। इसी बीच

रिजल्ट भी लीक होता रहता है।

बारहों महीनें फिल्मों में हीरोइन का जिस्म लीक करता रहता है। यदि उसके कपड़े नही फटे होते तो सिनमा घर का पर्दा फट जाता है।

अब तो नेताओं के ड्राइंग रूप और सेजीब्रिटीज के बेड रूम लीक करने लगे है। “प्लान्टेड केमरे” गोया उनके घरो के छेद है जिसमें रिश्वत और न जाने क्या क्या गुप्त कीचड़ समाज बाहर से देख रहा है।

अब आत्मा के अलावा कुछ भी गोपनीय नहीं रहा। वह भर माया से “फूल फ्रूफ” ढंकी है। सरकारी नौकरी में एक शब्द है गोपनीय प्रतिवेदन।

वह तो इतना गोपनीय है कि सचिवालय के पास की पान और दालचूडे की दुकानों पर टंगा रहता है। एक शासकीय कर्मचारी तो जिस कागज पर रख का समोसा खा रहा था वह उसका गोपनीय प्रतिवेदन ही था। हमारी सेना के गोपनीय भेदों का क्या कहना ?

जो भेद सेना के अधिकारियों को नहीं मालूम रहते वे पड़ोसी देशो को मालूम रहते है। हमारी सैनिक योजनायें हमें दुश्मन देशों में खरीदनी पड़ती है।

जो गोपनीय रहना चाहिये वह समाचार पत्रो और टी.व्ही. के माध्यम से सड़को पर वह रहा है। अब तो सूचना को व्यक्ति से छिपाने के स्थान पर सूचना से व्यक्ति को बचाना मुश्किल पड़ रहा है। समाचार व्यक्ति और संस्था के विज्ञापन हो गये है और विज्ञापन जनता के सूचना और समाचार।

 

✍?

 

लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

यह भी पढ़ें : –

खैराती अस्पताल का मरीज | डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव की कलम से

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here