वही मिट्टी वही खुशबू | Wahi Mitti Wahi Khushboo
वही मिट्टी वही खुशबू
( Wahi mitti wahi khushboo )
वही मिट्टी वही खुशबू वही बयार आई है।
लौट आओ गांव फिर नई बहार लाई है।
गीत गजलों के तराने वही झंकार आई है।
बजी मंदिर की घंटियां कर्ण टंकार लाई है।
ओढ़कर धानी चुनरिया धरा यूं हरसाई है।
हरियाली खेतों में लहरे सरसों महकाई है।
अधरो पे हंसी चेहरों पे मुस्कान छाई है।
प्रीत भरी पाती लहरों ने आन सुनाई है।
सादगी सद्भावो की पावन रसधार आई है।
दिलों में पलता प्रेम पावन संस्कार लाई है।
निर्मल मन के भाव बहती गंगधार आई है।
शहरों की चकाचौंध हरने जलधार लाई है।
धड़कनों की आवाज़ें माटी की पुकार आई है।
गांव की वो खुशबू खुशियों के अंबार लाई है।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )