दलितों से डर क्यों?
भारत में आर्यों के प्रवेश के सैकड़ों वर्षों बाद तक यहां वर्ण व्यवस्था नहीं थी हालांकि जातियां थीं ऐसा सनातनी ग्रंथों से मिलता है। जबकि वेदसूत्रों में प्रायः नहीं है । आर्यों -अनार्यों यानि देवों-असुरों के संघर्षों की कथाएं जगजाहिर हैं। अनार्य यहां के मूल निवासी हैं जबकि आर्य यूरेशियन मूल के।
आचार्य चतुरसेन शास्त्री के अनुसार वर्ण व्यवस्था का सूत्रपात लंका विजय के बाद पुरुषोत्तम राम ने नासिक के पंचवटी में किया और श्रृग्वैदिक और अथर्वेदिक श्रृषियों की दुश्मनी समाप्त की। मनुस्मृति में, जो महज़ 2500 साल पहले रक्षाकी है, अथर्ववेद की चर्चा नहीं है। यह वाहियात भ्रम फैलाया गया है कि चारो वेद ब्रह्मा के मुख से निकला है।
फिलहाल मैं यह बताना चाहूंगा कि दलितों से इतना भयभीत क्यों हैं ये मनुवादी सनातनी ? वेदों के संग्रहकर्ता वेदव्यास, रामायण के बाल्मीकि, भारतीय संविधान ही नहीं पाकिस्तान, नेपाल के संविधान लेखक, जिन्हें दलित की उपाधि है वे सभी शूद्र हैं। गार्गी से लेकर तमाम महिलाएं, जिन्हें ये शूद्र कहते हैं, अपनी श्रेष्ठता साबित कर चुकी हैं।
महाभारत के सौपच्य ऋषि, त्रेता के व्याघ्र ऋषि, शंबूक, अन्य असुर विद्वानों के सामने ये कहीं टिकते नहीं हैं। इसलिए राम ने यहां के अनार्यों, आश्रितों, पराजितों, स्त्रियों को शूद्र की श्रेणी में डाल दिया , हालांकि जातियों को बरकरार रखा।
आज भारत में ताकत प्राप्त आर्य, सवर्ण, और तथाकथित हिन्दू मनुवादी संवैधानिक सुविधाओं को इसीलिए खत्म करना चाह रहे हैं कि शिक्षित दलितों के तर्क और दलित साहित्य के सामने ये अपनी श्रेष्ठता साबित नहीं कर पाते हैं।निजीकरण के नाम पर दलितों की सारी सुविधाएं छीनी जा रही हैं।
शिक्षा से वंचित करने का पूरा षडयंत्र इसी भय का प्रतीक है। इसीलिए एससी, एसटी, ओबीसी व अल्पसंख्यक जो इनके बहकावे में हैं,वे भारतीयता को स्वार्थवश या अज्ञानतावश नष्ट कर रहे हैं। और मनुवादियों के डर को बल प्रदान कर अपनी ही जड़ में मट्ठा डाल रहे हैं। संविधान आर्यों के मंसूबे को कुचलता है, इसलिए अपना हक़ बरकरार रखने के लिए भारतीय संविधान को बचाना जरूरी है।
डॉ.के.एल. सोनकर ‘सौमित्र’
चन्दवक ,जौनपुर ( उत्तर प्रदेश )