वो निशानी दे गया | Wo Nishani de Gaya
वो निशानी दे गया
( Wo Nishani de Gaya )
ज़र्द चेहरा वो निशानी दे गया
बे सबब सी ज़िन्दगानी दे गया
उम्र भर जिसको समझ पाए न हम
इतनी मुश्किल वो कहानी दे गया
खूँ चका मंज़र था हर इक सू मगर
कोई लम्हा शादमानी दे गया
जाते जाते वो हमें यादों के साथ
खुश्बुएं भी जाफ़रानी दे गया
हर सतर बे रंग थी जिसकी कभी
ज़िन्दगी को वो मआनी दे गया
रब के फ़ैज़ाने -करम ऐसे हुए
शामें हमको वो सुहानी दे गया
शुक्रिया क्यों कर न बोलूँ उसको मैं
फ़न वो मीना ख़ानदानी दे गया

कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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