वो पूछते हैं उस खुदा से 

वो पूछते हैं उस खुदा से 

वो पूछते हैं उस खुदा से 

 

वो पूछते हैं उस खुदा से खामियाँ क्यूं खूब है।

हम भूलते है उसकी मेहरबानियाँ भी खूब है।।

 

 

हर एक खुशी मिलती नहीं जीवन में हर इक शख्स को।

इतिहास भी इसका गवाही देता है कहानियाँ भी खूब है।।

 

 

है आग भङकाती है तो दीपक को बुझाती है क्यूं।

बेदर्द सी सारे जहां की आंधियाँ भी खूब है।।

 

 

सँग भीङ के चलता रहा हूं शामिल इसमें नहीं।

अंदाज़ इसका है जुदा तन्हाइयाँ भी खूब है।।

 

 

मिलता सुकूं हमको बयां कर दर्द को यूं ग़ज़ल में।

“कुमार” एक शायर की ये बेचैनियाँ भी खूब है।।

 

 

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कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)

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हर दिल पे छायी काई सी क्यूं है

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