हर हर महादेव
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महाशिवरात्रि की पूर्व संध्या पर बम भोले के जयकारे लगाते हुए हम लोग चल पड़े।हमने किराए पर लोडर बुक किया था जिसका खर्च 150₹/व्यक्ति आया। हमने पहले ही उस पर पुआल बिछा दी थी ताकि हमे धक्के न लगें और उस छोटे से लोडर में 17-18 लोगों को बैठने में परेशानी न हो।
जगह कम थी जबकि लोग ज्यादा; ऐसे में जो लोग महाशिवरात्रि पर बाराबंकी स्थित लोधेश्वर महादेव के दर्शन करने जाते हैं उन्हें पता होगा कि इस यात्रा में कितनी मौजमस्ती और हुड़दंग होती है।
जितने भी लोग हमारे साथ यात्रा कर रहे थे सब एक से बढ़कर एक छिछोरे थे। जैसे ही गांव से बाहर लोडर आया हमारी मौजमस्ती चालू हो गयी और गलाफाड़ जयकारे, खचाखच भरे लोडर पर धक्के-मुक्के, गाली-गलौच और इन्ही से मिलती जुलती चीजों की शुरुआत हो गयी।
हर वर्ष की तरह इस बार भी मौसम खराब था। यह तय था कि बारिश होगी, ऐसे में प्रबुद्ध जनों ने तिरपाल खरीदकर लोडर पर शामियाने की तरह तान दी। जल्द ही बूंदाबादी शुरू हो गयी, ठंड भी काफी थी लेकिन हमारे जैसे नए रंगरूटों ने जयकारों और हुड़दंगपन से लोडर का माहौल गर्म किये रहे।
उस लोडर में 2 आयु -वर्ग के लोग थे-विवाहित और अविवाहित वर्ग। जहां वर्ग विभेद होता है वहां गुट बनते ही हैं। जल्द ही लोडर में 3 खेमे बन गए।
विवाहित गुट प्रायः उन लोगों का था जो उम्र में बड़े और लगभग हर वर्ष दर्शन करने जाते हैं वहीं अविवाहित गुट में वह शामिल थे जो पहली बार दर्शन करने जा रहे थे.. इसमे मैं, रवी और 1-2 लड़के और शामिल थे।
इससे इतर तीसरा गुट भी था जो उदासीन (विरक्त) था, उस गुट के लोगों का मुख्य उद्देश्य मुंह बांधे यात्रा करना और जल्द से जल्द गंतव्य तक पहुंचना था।
विवाहित गुट अनुभवी था इसलिए शांत था यह अलग बात है कि उनके भीतर दुनिया भर का छिछोरापन भरा हुआ था। जबकि दूसरा हमारा अविवाहित गुट था जो जोश में था।
विवाहित गुट अपने छिछोरेपन के लिए भले ही प्रसिद्ध था लेकिन हमने खासकर रवि ने उनकी हवा टाइट कर रखी थी।
हालत यहां तक पहुंच गयी कि जाजमऊ पहुंचने से पहले वह इतना तंग आ गए कि पानी मांगने लगे। लोडर से उतरते ही उन्होंने हमारे सामने हाथ जोड़ लिए।यह वही लोग हैं जो 2 मिनट में किसी का भी मखौल उड़ा के रख देते हैं।
हम रात करीब 10.30 बजे जाजमऊ पहुंचे।यहां हमे गंगास्नान और पूजन करना था। मान्यता के अनुसार यहां से गंगाजल लेकर शिवरात्रि में महादेवा स्थित शिवलिंग में चढ़ाना पवित्र माना जाता है।
हम लोगों ने पवित्र नदी के ठंडे पानी मे स्नान और पूजन किया। बूंदाबांदी अब भी जारी थी और बेहद ठंड थी। मैंने इससे पहले जीवन मे कभी गंगास्नान नही किया था।रात्रि में इतनी ठंड में गंगास्नान करना नया और हाड़ कंपा देने वाला अनुभव था।
गंगास्नान के बाद हम सबने मिल-बांटकर खाना खाया। जैसे कि मुझे महसूस हो रहा था खाने के कुछ देर बाद ही मुझे चीजें”डबल” दिखने लगीं और भ्रम उत्पन्न होने लगा। यह स्थिति कुछ देर पहले हमारे भांग खाने से उत्पन्न हुई थी।
कउनो कह रहा था कि हम इस यात्रा को यादगार बनाएंगे इसी चक्कर मे सबने बकरियों की विष्ठा के आकार की छोटी छोटी भांग की गोली दाब ली। कुछ ही देर में धरती सच मे घूमती हुई महसूस होने लगी। सपाट सड़क पर चलते हुए भी लग रहा था जैसे सड़क ढलान पर हो।डर लग रहा था कहीं चलते हुए फिसल न जाऊं।
भांग का नशा दमचोर होता है। यह आनंद तो देता है लेकिन साहस छीन लेता है। भांग खाकर आप चलने-फिरने की जगह किसी अंधेरे कमरे में लेटकर चाँद-तारे देखना पसंद करेंगे ।
हम लोग खा पीकर लोडर में बैठ गए। लोडर अब सड़क पर दौड़ रहा था।भांग के नशे में रवी विवाहित गुट के उग्र सदस्यों को लतियाने में व्यस्त था।
ठंड बेहद थी जिसने सबके जोश ठंडे कर दिए जो अभी तक एक दूसरे को लतियाने में व्यस्त थे अब दुबककर कम्बल ढूंढ रहे थे।
मैंने देखा विवाहित गुट का एक सदस्य जो गांव में शायद ही कभी बोलता हो, जेब से बंदूक छाप बंडल निकाला।वह शायद ठंड भगाना चाहता था। उसने 3-4 बीड़ी सुलगा लीं। मैंने सोचा अपने साथियों को वह 1-1 बीड़ी आफर करेगा लेकिन उसके विचार कुछ और थे।उसने चारों बीड़ी एकसाथ पीनी शुरू कर दीं।
यह अजीब था।वह धुँवा उगलता तो ऐसा लगता था जैसे ईंट के भठ्ठे से धुंवा निकल रहा हो। मैंने देखा उसने इकट्ठे चारों बीड़ी के 2 तेज कश लिए और पूरा धुंआ बगल में कम्बल ओढ़े व्यक्ति के कम्बल के भीतर छोड़ दिया। कम्बल वाला व्यक्ति अकबकाकर उठा और दम भर गालियां दीं।
हां!!ऐसी ही चीजें इस यात्रा में होती हैं।अगर आप सीधे-सादे हैं और मौजमस्ती पसन्द नही तो बेहतर होगा कि खुद के वाहन से अकेले दर्शन कर आइए।
हम लोग रात करीब 3 बजे महादेवा पहुंचे। दूर दूर तक वाहनों की कतारें लगी हुई थीं।हजारों भोले भक्तों और उनके जयकारों से बुढ़वल-रामनगर रोड गुलजार थी।
कहते हैं लोधेश्वर महादेव मंदिर में स्थित शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी।तब इस क्षेत्र को बराह वन कहा जाता था क्योंकि यह क्षेत्र विशाल और घने जंगलों से युक्त था।
यहीं पर पांडवो ने अज्ञात वास का कुछ समय छिपकर बिताया था( दुर्योधन द्वारा पांडवों को जुएं में हराने के बाद 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास की सजा मिली थी)।
ऐसी मान्यता है कि मंदिर से 2 km उत्तर की ओर घाघरा नदी के किनारे कुलछत्तर नामक जगह पर मुनि वेद व्यास जी की आज्ञा से पांडवों ने रुद्र महायज्ञ आरंभ किया।उस यज्ञ स्थली के आज भी प्रमाण मिलते हैं।
उसी दौरान इस शिवलिंग की स्थापना की गई जिसे कालांतर में यहां के राजाओं द्वारा इस मंदिर में स्थापित किया गया। तब से यह स्थान भगवान शिव को मानने वालों के लिए “मक्का”हो गया।
यहां हर साल 4 बड़े मेले लगते हैं जिनमे नवम्बर-दिसम्बर में लगने वाला मेला जानवरों की खरीद बिक्री के लिए प्रसिद्ध है जबकि सबसे बड़ा फागुनी मेला महाशिवरात्रि पर्व पर लगता है।
यहां दूर दराज के कई राज्यों से भोले भक्त जयकारे लगाते हुए पैदल,साइकिल से,कांवर लेकर, साष्टांग दंडवत करते हुए आते हैं।
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