एक अजीब लड़की
एक अजीब लड़की

एक अजीब लड़की !

( Ek ajeeb ladki )

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घड़ी घड़ी कपड़े है बदलती,
बिना काम बाजारों में है टहलती।
अभी दिखी थी साड़ी में,
अब आई है गाउन में;
नयी नयी लग रही है टाउन में।
अधरों पर लिए अजीब मुस्कान,
कुछ खास नहीं उसकी पहचान।
मुखरे पर किए अतिशय श्रृंगार,
युवा धड़कनें रहे दिल हार।
ओ ! अलबेली चालों वाली,
मतवाली आंखों वाली।
जुल्फें लहरा रही हो ऐसे,
अरमानों के सागर किनारों से-
टकरा रहीं हों जैसे।
करो इन्हें काबू,
युवा दिलों को न करो बेकाबू।
वस्त्र न बदलो घड़ी घड़ी,
बदलो अपनी सोच अब हो गई हो बड़ी ।
युवा तुझे देख फ़िदा होंगे,
तेरी अदाओं पे मर मिटेंगे;
कई जलते दीए बुझेंगे।
कुछ मिल जायेंगे खाक में,
फिर भी सब रहेंगे तेरी ताक में।
तेरा हुस्न बिखरेगा,
नहीं तेरा कुछ बिगड़ेगा।
बिगड़ेगी युवा पीढ़ी,
चढ़नी है जिनको-
सफलता की पहली सीढ़ी।
तू छोड़ जा शहर को,
फैलाओ ना रूपसी कहर को!
ख्वाहिशों के तले न खेलो आग से,
तुझसे बच सकता है कोई-
बड़े ही भाग से।
यह आग किसी की ना होती!
जलाकर सबकुछ राख है कर देती!!

?

नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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