माना कि तुम | Love kavita
माना कि तुम
( Mana ki tum )
माना कि
इन हाथों की
लकीरों में तुम नहीं….……..
फिर भी मुझमें
तुम शामिल हो,
लकीरें तो उनके
हाथ में भी नहीं होती
जिनके हाथ नहीं होते।
तुम मुझे हासिल नहीं
फिर भी मुझसे तुम
दूर तो नहीं हो।
इन हाथों की लकीरों में न सही
मेरे दिल में तो हो तुम
वो धड़कन बनके
जो धड़कती रहती है
मेरी हर साँसों में
एक जुनून बन कर।।
कवि: सन्दीप चौबारा
( फतेहाबाद)
यह भी पढ़ें :