याद नहीं अब तो कुछ भी | Yaad Nahi
याद नहीं अब तो कुछ भी
( Yaad nahi ab to kuch bhi )
याद नहीं अब तो कुछ भी बदली है तस्वीर यहां।
जो मुखोटे पल-पल बदले बदली है तकदीर यहां।
विश्वास प्रेम की धाराएं या बदल गई जीवन धारा।
झूठ कपट ईर्ष्या मे मानव लोभ मोह में पड़ा सारा।
याद नहीं अब कुछ हमको वो ख्वाब सुरीले भूल गए।
धन की खातिर गांव छोड़ा फिर भागदौड़ में झूल गए।
कब रिश्तो की टूटी डोरी वो नफरत की आंधी आई।
इक दूजे पे जान छिड़कते दुश्मन बन गये भाई-भाई।
याद नहीं वो पल सुहावने कोना कोना मुस्काता था।
धीरज ममता प्रेम समर्पण सद्भाव फूल खिलाता था।
हर दिल में अनुराग बरसता नैनों से नेह की धारा।
घर की छान उठाने आता हर्षित हो पड़ोसी प्यारा।
याद नहीं अब कुछ हमको बुजुर्गों का होता सम्मान।
पूज्य पिता की बातों पर रखना होता था पूरा ध्यान।
पाठशाला में डंडे पड़ते हमको गुरुदेव मिलते विद्वान।
दमक उठते किस्मत के तारे गुरु देते हमको वरदान।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )