Yahi Var do Maa
Yahi Var do Maa

यही वर दो मां

 

नव रूपों मे सज धज कर आज आई हो मां
मेरी बस इतनी सी विनती भी सुन लेना मां

नही चाहिए धन दौलत या सारा सम्मान मुझे
सब जन के मन मे केवल मानवता भर देना

मानव ही मानव का कर रहा संहार क्यों
इतना भी बैर हृदय मे कैसे पल सकता मां

कन्या पूजी जाती ,उसके चरण छुए जाते
तब वही सड़क पर फिर क्यों नोची जाती मां

नारी भी नारी का सम्मान नही करती क्यों
आज नग्नता को वही क्यों धार रही है मां

पूज रहे सब तुम्हे ,प्रथम पूज्य जननी कह
पर वे ही भूल रहे क्यों अपने निज धर्म मां

उज्ज्वल,निर्मल,शीतल सा अब माहौल बने
आशीर्वाद यही दो,फैले प्रेम यही वर दो मां

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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