यही वर दो मां
नव रूपों मे सज धज कर आज आई हो मां
मेरी बस इतनी सी विनती भी सुन लेना मां
नही चाहिए धन दौलत या सारा सम्मान मुझे
सब जन के मन मे केवल मानवता भर देना
मानव ही मानव का कर रहा संहार क्यों
इतना भी बैर हृदय मे कैसे पल सकता मां
कन्या पूजी जाती ,उसके चरण छुए जाते
तब वही सड़क पर फिर क्यों नोची जाती मां
नारी भी नारी का सम्मान नही करती क्यों
आज नग्नता को वही क्यों धार रही है मां
पूज रहे सब तुम्हे ,प्रथम पूज्य जननी कह
पर वे ही भूल रहे क्यों अपने निज धर्म मां
उज्ज्वल,निर्मल,शीतल सा अब माहौल बने
आशीर्वाद यही दो,फैले प्रेम यही वर दो मां
( मुंबई )