Yakeen
Yakeen

यकीन

( Yakeen ) 

 

भले दे न सको तुम मुझे अपनापन
मेरा यूं मेरापन भी ले नाही पाओगे
उस मिट्टी का ही बना हुआ हूं मैं भी
इसी गंध मे तुम भी लौट आओगे…

फिसलन भरी है जमीन यहां की
फिसलते ही भले चले जाओगे
महासागर बनकर बैठा हुआ हूं मैं
मुझी मे तुम भी कभी मिल जाओगे…

चाहा हूं दिल की अथाह गहराइयों से
तैरकर कोई छू ले भले तुम्हे चाहे
हम भी रहते हैं तुम्हारे दिल मे कहीं
जुबां कह न पाना फितरत है तुम्हारी…

दिल की बातों को समझ लेता है दिल
शब्दों की उसे जरूरत ही नही होती
खामोश पलकें भी कह देती हैं कुछ
मुफ्त को चीज कभी महंगी नही होती,..

सदियों से रही है लगी तलब आपकी
यकीन है हमे भी अपनी चाहत पर
कल भी थे आप,कल भी होंगे आप मेरे
आज ही तो सबकुछ होता नही यहां पर

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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