ये नफ़रत की दुनिया
ये नफ़रत की दुनिया
संभालो तुम अपनी ये नफ़रत की दुनिया।
बसानी है हम को मुह़ब्बत की दुनिया।
लड़ाती है भाई से भाई को अकसर।
अ़जब है तुम्हारी सियासत की दुनिया।
नहीं चाहिए अब , नहीं चाहिए अब।
ये दहशत की दुनिया ये वहशत की दुनिया।
फंसी जब से नर्ग़े में यह बातिलों के।
तमाशा बनी है सदाक़त की दुनिया।
जहां मिल के रहते थे शेख़-ओ-बरहमन।
कहां खो गई वो अख़ुव्वत की दुनिया।
फ़क़त चंद फ़िरक़ा परस्तों के सदक़े।
लुटी जा रही है मुरव्वत की दुनिया।
जहां दिल्लगी,दिल्लगी ही थी हर सू।
कहां गुम हुई वो ज़राफ़त की दुनिया।
फ़राज़ उसकी क़िस्मत पे नाज़ां है यह दिल।
मयस्सर है जिसको मुसर्रत की दुनिया।
पीपलसानवी
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