योगेश की कविताएं | Yogesh Hindi Poetry
इंसानियत मर रही
कितना क्रूर होता जा रहा अब मानव,
मानवता क्रूरता में बदलती जा रही,
अपने स्वार्थ की हर सीमा लांघ रहा,
बुद्धिमत्ता, समझदारी क्षीण होती जा रही,
रिश्ते – नाते,अपने – पराए,सब भूल रहा,
इंसानियत भी अब शर्मसार हुए जा रही,
दोष इन सबका हालातों को दिया जा रहा,
मगर झांककर देखो ये नशे की लत हर घर अपना आतंक ढा रही,
क्रूरता में अपनी इतना अंधा हुए जा रहा,
कि पवित्र रिश्तों की मर्यादा भी सरेआम तार तार हो रही,
यहां अब कोई इंसान, इंसान नहीं रहा,
जहां देखो वहीं हैवानियत फैल रही,
अपमानित खुद की अंतरात्मा को भी कर रहा,
अब इंसान खुद भी खुद को अपने हाथों ही बर्बाद कर रहा,
झुठलाने को ये सब चाहे बन जाओ धृतराष्ट्र या गांधारी,
सच तो ये है अब इंसानियत ही मर रही,
अब इंसानियत ही नहीं रही।।
रिश्ते बस नाम के
आधुनिक समाज और रिश्ते कुछ ऐसे है
जैसे मोबाइल और ब्लूटूथ का कनेक्शन।
सुनने में और समझने में थोड़ा अजीब है,
लेकिन ये तो दो तरफा सच है,
समाज चाहता है रिश्ते बनाना,
लेकिन सोच से अपनी उसे बाज नहीं आना,
रिश्ते भी चाहिए दिल से,
लेकिन निभाते खुद ही दिमाग से,
भरोसा है नहीं किसी की कोई बात पर,
बहाने सौ बनाते बुलाने पर,
ये समाज की समझ भी बड़ी अजीब है,
इनके पास शक की कई सारी तरकीब है,
समाज की सोच के चलते कई अपने पराए हो रहे,
सच कहूं तो अब रिश्ते बस नाम के रह रहे।।
लालबहादुर शास्त्री
2 अक्टूबर 1904, मुगलसराय में आई बहार,
रामदुलारी का राजदुलारा,
चमका बनकर अलग ही सितारा,
कर्मठ, विनम्र,सरल,परिश्रमी,शांत भावी,
शिक्षा में निपुण थे अनुभवी,
चार भाइयों में सबसे छोटे,
जीवन में उतार चढ़ाव थे इनके मोटे,
अठारह अठारह का था इनका ना जाने कैसा आंकड़ा,
मृत्यु के अठारह महीने तक प्रधानमंत्री का कार्यभार,
उससे पहले जन्म के अठारह महीनों में पिता का साया था बिछड़ा,
जय जवान जय किसान,बढ़ा दी चहुं ओर देश की शान,
रची थी कोई साजिश या था कोई आस्तीन का सांप,
अपनी मृत्यु का रहस्य ये ले गए अपने ही साथ,
आज भी जुबां पर हर बच्चे के इनका नाम है,
जहां हुई अंत्येष्टि वो यमुना के तीर विजय घाट इनका मुक्तिधाम है,
ऐसे वीर पुरूष को जन्मदिवस पर कोटि कोटि प्रणाम है।।
चांद
पता नहीं क्यों पर आज मैंने भी बचपने सी ज़िद की,
अपने मां से चांद लाने की मांग की,
मां ने भी बड़ी मासूमियत से मुझे काला टीका लगा दिया,
ले जाकर मुझे शीशे के सामने खड़ा कर दिया,
और कहा,आओ तुम्हें मेरे चांद से मिलवाती हूं,
इस शीशे में तुम्हें चांद से रूबरू करवाती हूं।।

रचनाकार : योगेश किराड़ू
बीकानेर ( राजस्थान )
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