चांद
पता नहीं क्यों पर आज मैंने भी बचपने सी ज़िद की,
अपने मां से चांद लाने की मांग की,
मां ने भी बड़ी मासूमियत से मुझे काला टीका लगा दिया,
ले जाकर मुझे शीशे के सामने खड़ा कर दिया,
और कहा,आओ तुम्हें मेरे चांद से मिलवाती हूं,
इस शीशे में तुम्हें चांद से रूबरू करवाती हूं।।
रचनाकार : योगेश किराड़ू
बीकानेर ( राजस्थान )
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