कुम्हार | Kumhar kavita
कुम्हार
( Kumhar )
बाबू ले लो ना दिए घर तेरा रोशन हो जाएगा।
एक वक्त की रोटी के लिए मेरा चूल्हा भी जल जाएगा।
मेरी भूख तब मिटेगी जब तेरा हर कोना जगमग आएगा।
ले लो ना बाबू जी कुछ दिए मेरा चूल्हा भी जल जाएगा।
छोटे बड़े दीपक से अंधकार मिट जाएगा
तेरी मेहरबानी से फिर कुम्हार मुस्कुराएगा।
माटी है माटी को माटी में मिल जाने दो।
छोड़ दो प्लास्टिक
धरती को खिल जाने दो।
यह माटी ही तो है जो अन्न,धन, सोना, सुख संपत्ति, देती है।
ले लो ना बाबू जी कुछ दिए घर तेरा रोशन हो जाएगा।
एक वक्त की रोटी के लिए चूल्हा मेरा भी जल जाएगा।
ले लो ना बाबू जी यह
गुल्लक गुडलक कहलाता है।
ज्यादा महंगा नहीं बस ₹20 में आता है।
अनगिनत पैसों से जब भर जाता है,
टूटने पर मिट्टी में मिल जाता है,
छोड़ दो ना प्लास्टिक के गुल्लक बाबूजी,
माटी को माटी में मिल जाने दो।
छोड़ दो मोमबत्ती का रोना,
मेरा दिया करेगा जगमग हर कोना।
बाबू ले लो ना दिए घर तेरा रोशन हो जाएगा।
एक वक्त की रोटी के लिए चूल्हा मेरा भी जल जाएगा।
लेखिका :-गीता पति ( प्रिया) उत्तराखंड