महालया
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महालया

( Mahalaya :  Essay in Hindi )

 

पश्चिम बंगाल की ऐतिहासिक दुर्गा पूजा का आरंभ महालय के बाद ही होता है। महालया, बंगाल में दुर्गा पूजा में महालया का विशेष महत्व होता है, महालया के दिन से ही दुर्गा पूजा की शुरुआत हो जाती है। मां दुर्गा में आस्था रखने वाले बंगाल के लोगों को महालया का साल भर से इंतजार रहता है।

महालया पितृपक्ष का आखरी दिन भी होता है इसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है इस दिन सभी मित्रों को याद कर तर्पण दिया जाता है और उनकी आत्मा तृप्त हो जाती है और वे खुशी खुशी विदा हो जाते हैं या खुशी खुशी विदा किया जाता है।

जैसे ही साथ समाप्त होते हैं वैसे ही दुर्गा मां कैलाश पर्वत से धरती लोक पर आगमन करती हैं। और 10 दिनों तक पृथ्वी लोक पर ही विराजमान रहती हैं

क्या आप जानते हैं महालया के दिन ही मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें तैयार करते हैं महालया के बाद ही मां दुर्गा की मूर्ति को अंतिम रूप दिया जाता है और उस मूर्ति पर रंगों की बौछार की जाती है सुंदर कलाकृति की जाती है मां दुर्गा की मूर्ति पंडालों की शोभा बढ़ाती है।

11 से मूर्तिकार अद्भुत कलाकारी करते हैं मां का ऐसा स्वरूप तैयार करते हैं कि नजर ही नहीं हटती मूर्ति से भव्य व सुंदर मूर्ति कारी करते हैं।

महालया क्यों मनाया जाता है क्या है इसकी कहानी क्या है इसका इतिहास? आइए आज मैं महालया के इतिहास के विषय में जानकारी देती हूं।

पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के आधार पर ब्रह्मा जी विष्णु और महेश ने अत्याचारी राक्षस महिषासुर के संहार के लिए मां दुर्गा का सृजन किया और महिषासुर को वरदान था कि कोई भी देवता या मनुष्य उस राक्षस का वध नहीं कर पाएगा।

ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और देवता उसी युद्ध में हार गए और देव लोक पर महिषासुर का राज हो गया ।

महिषासुर से रक्षा करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ मिलकर आदि शक्ति की आराधना की उसी दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक ऐसी दिव्य शक्ति या रोशनी निकली जिसने देवी दुर्गा का रूप धारण किया।

शस्त्रों से सुसज्जित मां दुर्गा ने महिषासुर से 9 दिनों तक भीषण युद्ध किया दसवें दिन महिषासुर का वध किया। देखा जाए तो महालया मां दुर्गा के धरती पर आगमन का प्रतीक है। मां दुर्गा को ही शक्ति की देवी माना जाता है।

महालया कैसे मनाया जाता है वैसे तो महालया बंगालियों का त्यौहार है यह कोलकाता पश्चिम बंगाल के सभी क्षेत्रों में गांव शहर सभी जगह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है यह नवरात्रि व दुर्गा पूजा का प्रतीक है। मध्य रात्रि पटाखों को जलाकर दुर्गा मां का स्वागत किया जाता है।

बंगाल में दुर्गा पूजा बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है माता का स्वागत पटाखों से वह होली के रंगों से किया जाता है।

बड़े ही हर्ष और उल्लास से यह त्यौहार मनाया जाता है नए वस्त्र पहनकर पंडालों में अष्टमी के दिन मां दुर्गा को पुष्पांजलि दी जाती है मां दुर्गा का जोरों शोरों से भव्य स्वागत किया जाता है और उतने ही हर्षोल्लास से मां दुर्गा का विसर्जन भी किया जाता है।

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लेखिका :-गीता पति ( प्रिया) उत्तराखंड

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