दिल कर गये ज़ख्मी उसके ही फ़रेब आज़म | Fareb shayari
दिल कर गये ज़ख्मी उसके ही फ़रेब आज़म
( Dil kar gaye zakhmi uske hi fareb Azam )
दिल कर गये ज़ख्मी उसके ही फ़रेब आज़म
उल्फ़त में खा गये हम तो फ़रेब आज़म
पहले किया मुहब्बत के वादे रोज़ मुझसे
हर वादे बन गये उल्फ़त के फ़रेब आज़म
मैंने दिया वफ़ा का ही फ़ूल रोज़ जिसको
दिल में ही दें गये वो ग़म के फ़रेब आज़म
जो ज़ख्म भर नहीं सकते चाहकर कभी भी
ऐसे मिले यहां उल्फ़त में फ़रेब आज़म
देता रहा शरारे उल्फ़त भरे अपनों को
मिलते रहें यहाँ अपनों से फ़रेब आज़म
मैं जोड़ लूँ उसी से रिश्ता वफ़ा का कैसे
उसकी बहुत भरे दिल में ही फ़रेब आज़म
देता गुलाब उसको ख़ुशबू भरा वफ़ा से
मिलते नहीं मुझे उल्फ़त में फ़रेब आज़म