शीशों के घर | Sheeshon ke Ghar Kavita
शीशों के घर
( Sheeshon ke ghar )
शीशों के घर लड़ते हैं ।
पत्थर हम पर पड़ते हैं ।।
कहने के ही पत्थर हैं ।
शीशों से भी डरते हैं ।।
चाकू और सियासत को ।
हम भेड़ो से लगते हैं ।।
कच्चे शीशों की पत्थर ।
पहरेदारी करते हैं ।।
बदन कांच के हैं जिनके ।
पत्थर का दिल रखते हैं ।।
लेखक : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव
171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
शानदार कविता