भुला रहे हो न | Bhula rahe ho na kavita
भुला रहे हो न
( Bhula rahe ho na )
कुछ बोलो कुछ तो सच बोलो,
आज लिखकर मिटा रहे हो न।
चुड़ा दही कुर्ता पायजामा आदि,
बोलो ना तुम क्यों शर्मा रहे हो न।
जहां आज खड़े हो ऐ उनकी है,
पेड़ पौधे कुआं कल सब के सब।
क्यों छुप कर भी जाते हो गली से,
उनके ख्वाबों को जला रहे हो न।