पाकीज़गी | Pakizagi
( पाकीज़गी )
Pakizagi
दर्द को उडेलने से अच्छा है उसे पी लिया जाय
जीना है उसी हाल में, तो क्यों न जी लिया जाय
कौन अलहदा है, गम की मौजूदगी से यहाँ
तो क्यों न उसी को, सफ़ीना मान लिया जाय
कोई रहबर नही यहाँ के,इस कतलखाने मे
मरना हि तय है , तो क्यों न मुस्करा लिया जाय
सुना है नहाने से हि, आ जाती है पाकीजगी
तो क्यों न चलकर, गंगा हि नहा लिया जाय
गुलाब की जड़ें तो हैं, जमीन तक धंसी हुयी
चलो बहारों के संग, फ़िज़ाँ मे हि घूम लिया जाय
करें ऐतबार किसका, गुमान भी किस पर करें
ले आते हैं हीना, खुद से हि हाथ रंग लिया जाय
( मुंबई )