Meethi meethi thandhak

मीठी-मीठी ठण्डक | Kavita

मीठी-मीठी ठण्डक

( Meethi meethi thandhak )

 

कांप रहे सब हाथ पांव, मौसम मस्त रजाई का।

देसी घी के खाओ लड्डू, मत सोचो भरपाई का।

 

ठिठुर रहे हैं लोग यहां, बर्फीली ठंडी हवाओं से।

धुंध कोहरा ओस आई, अब ठंड बढ़ गई गांवों में

 

गजक तिल घेवर बिकती, फीणी की भीनी महक।

मूंगफली मेवों का मौसम, गर्म जलेबी रही चहक।

 

ठंडी ठंडी हवा चली, सन सन करती कानों में।

ठंडक में सब दुबक रहे, बैठे लोग दुकानों में।

 

आओ अलाव जलाये अब, सर्दी से राहत पा ले।

गर्म टोपी सिर पर रख, होठों से थोड़ा मुस्का ले।

 

पतंगों का नजारा भी, उमंग उत्साह भरता है।

उर उमड़ते भाव कई, मन मयूरा मचलता है।

 

   ?

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

संक्रांति | Sankranti kavita

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *