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उठो पार्थ
( Utho parth )
उठो पार्थ प्रत्यंचा कसो महासमर में कूद पड़ो।
सारथी केशव तुम्हारे तुम तो केवल युद्ध लड़ो।
धर्म युद्ध है धर्मराज युधिष्ठिर से यहां महारथी
महाभारत बिगुल बजाओ उद्धत होकर हे रथी।
कर्ण भीष्म पितामह से महायोद्धा है सारे भारी।
धनंजय धनुष बाण लेकर करो युद्ध की तैयारी।
जीवन मरण संग्राम में सदा धर्म की विजय होती।
अन्याय अनीति हारे हैं रण में वीरों की जय होती।
जन्म मृत्यु से परे निकल समदर्शी होकर देखो।
अपना पराया भाव तज मन में दृढ़ विश्वास रखो।
गांडीव धनुष हाथ ले अर्जुन पराक्रम दिखाना है।
धनुर्धारी हे कुंती पुत्र वीरों का समर ठिकाना है।
रणभूमि में मरने वाले सदा वीरगति को जाते हैं।
विजय वरण करें वीरों का धरा सुख को पाते हैं।
मृत्यु है सत्य सनातन शाश्वत सत्य को पहचानो।
रण में क्या करना तुमको वीर स्वयं को भी जानो।
शूरवीर शौर्य दिखलाओ धर्म युद्ध आगाज करो।
पांचजन्य शंख बजाओ उठो पार्थ शंखनाद करो।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )