
इसे अपने आप समझिए
( Ise apne aap samajhie )
जिंदगी संघर्ष है
इसे अपने आप समझिए,
बचपन डैस,
जवानी कामा
मृत्यु को फुलस्टाफ समझिए।
जिंदगी दिल्लगी है
इसे छोड़ कर ना भागिए,
इस हार जीत
की जिंदगी में
कभी बच्चा तो कभी बाप समझिए।
जिंदगी एक दौलत है
कभी फुल तो कभी हाफ समझिए,
कभी अपनी
कभी अंजान
कभी गुस्ताखी तो कभी माफ समझिए।
जिंदगी जन्नत है
इसे ना बकवास समझिए,
कभी खूशी
कभी ग़म
कभी आशा निराशा की छांव समझिए।
जिंदगी एक दरिया है
कहीं छिछला कहीं गहरा कहीं ठांव समझिए,
कभी नेकी
कभी बंदगी
कभी जन्नत का द्वार समझिए।
जिंदगी एक सफर है
कहीं सुबह कहीं शाम समझिए,
जी ले
प्यार की जिंदगी
इसे ना अपना मुकाम समझिए।
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी
( अम्बेडकरनगर )