Dhokha kavita

धोखा | Dhokha kavita

धोखा

( Dhokha )

 

दे गये धोखा मुझे वो, बीच राह में छोड़कर।
प्रीत का रस्ता दिखा, चले गए मुंह मोड़कर।

 

महकती वादियां सारी, फूल भी सारे शर्माने लगे।
उनकी बेरुखी को हमें, अक्सर यूं बतलाने लगे।

 

मन में उठती लहरें सारी, अब हो चली उदास सी।
कल तक वो बातें मीठी, लगती हमको खास थी।

 

मुस्कुराना सीखा था, उनकी अदा मनभावन थी।
प्रेम की बहती सरिताये, मधुर सुहाना सावन सी।

 

अपनों की महफिल में, पग-पग पे धोखे खाए हैं।
राहों में हर तूफानों को, फिर भी धूल चटाये है।

 

हौसलों से मंजिलों तक, तय सफर किया हमने।
जिंदगी से सीखा खूब, कितना जहर पिया हमने।

 

अब हमारी बुलंदियों से, अक्सर वो घबराते हैं।
जहां कदम पड़े हमारे, सुखसागर बन जाते हैं।

   ?

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *