वक्त का एक मसअला हैं हम
( Waqt ka ek masala hai hum )
वक्त का एक मसअला हैं हम !
चल रहा एक काफिला हैं हम!!
मौज के साथ हैं हवा हैं हम
चलती साँसों का सिलसिला हैं हम !!
दर्द भी जिसके साथ हँसते हैं
ज़िन्दगी ऐसा हौसला हैं हम !!
कर रहा महसूस जिसको जमाना
ऐसा खामोश ज़लज़ला हैं हम !!
मौत भी जिसको जीत ना पायी
जंग का ऐसा मरहला हैं हम !!
जिसकी हर बात तवारीख बनी
ऐसी एक जंगे करबला हैं हम !!
जिसमें डरते हैं जज भी आने से
उस अदालत का मामला हैं हम !!
नक्शे – पा मंजिलें हैं दुनिया की
ज़ीस्त का ऐसा फ़ासला हैं हम !!
हम तो “आकाश” भी हैं शबनम भी
हैं समन्दर के बुलबुला हैं हम !!
कवि : मनोहर चौबे “आकाश”
19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001
( मध्य प्रदेश )
[मसअला = मुद्दा; समस्या; विचारणीय विषय।
वक्त =समय। काफिला
=यात्री दल; सार्थवाह।
मौज=लहर;तरंग।
सिलसिला=श्रेणी;पंक्ति;क्रम; व्यवस्था।
हौसला=साहस; हिम्मत।
ज़लज़ला= भूकम्प;भूचाल;भूगोल।
जंग=लड़ाई;समर;युद्ध।
मरहला= विकट कार्य; समस्या।
जंगे करबला =अरब देश का वह स्थानीय युद्ध जिसमें अली के छोटे लड़के हुसैन को मारा गया था।
तवारीख=इतिहास।
नक्शे पा = पैरों के निशान।
ज़ीस्त = ज़िन्दगी;जीवन।
फासला=दूरी;अन्तर।
शबनम= ओस; एक बहुत महीन कपड़ा।]
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