उसका सितम इनायत से कम नहीं
उसका सितम इनायत से कम नहीं

उसका सितम इनायत से कम नहीं!

( Uska sitam inayat se kam nahin ) 

 

सैकड़ों तीर उसे चलाना आ गया,
जैसे मेरे घर मयखाना आ गया।
बढ़ती जब तलब आती है मेरे घर,
उसको भी दिल लगाना आ गया।

छोटे – सी थी अब हो गई है बड़ी,
वादा उसे भी निभाना आ गया।
करते थे पहले छोटी-छोटी शरारत,
अब तो उसमें भी दाना आ गया।

हुस्न और इश्क़ की कहानी अजब,
अब तो उसको रुलाना आ गया।
अश्कों की हुकूमत चलेगी कब तक,
आँखों से आँख लड़ाना आ गया।

चलती है लेकर हुस्न का खजाना,
दामन उसको भी बचाना आ गया।
उसका सितम इनायत से कम नहीं,
उसे अब आँख दिखाना आ गया।

मोहब्बत की चोट से होते हैं घायल,
उसको अब नींद उड़ाना आ गया।
धूप में बनती है मेरा शामियाना,
बिना होंठ हिलाये बतियाना आ गया।

 

रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),

मुंबई

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