जल संरक्षण | Poem jal sanrakshan
जल संरक्षण
( Jal sanrakshan )
सोचल्यो समझल्यो थोड़ा हिवड़ा म ध्यारल्यो
पाणी घणों मान राखै मन म बिचारल्यो
मोतिड़ा सा दमकै ज्याणी पाणी री आब ज्यूं
सांसा री डोर संभळै पाणीड़ा री धार सूं
सूखरया तळाब कुआं लूंवा चालै बारनै
पाणीड़ो बचाणो भाया जमाना र कारणै
ठण्डों ठण्डो पाणी मिलज्या ई गर्मी म जीव न
घर की मिजाज़ण राजी पाणी प्यावै पीव न
सेठ साहूकार स्याणा प्याऊ लगवाता हां
जेठ र महीना माही गांव चाल्या आता हां
भला मिनख घणा आपणा पाणी बचाता हां
जीव जीनावर प्यासा न रवै रूखाळी कराता हां
पाणी घणों अनमोल जाणल्यो बूंद बूंद बचाणो है
जीवन लो मूळ जाणो चोखो रहणो खाणो है।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )