तुम्हारे शहर की फिज़ा | Kavita tumhare shehar ki fiza
तुम्हारे शहर की फिज़ा
( Tumhare shehar ki fiza )
तुम्हारे शहर की अलग फिज़ा हैं
प्यार तो जैसे बिका पड़ा है …
हैं ये नीलामी अपने ही दिल की ,
जर्रे जर्रे पर फरेब छुपा पड़ा है …
हर कोई राजा है अपने दिल का
शतरंज दिल का यहां बिछा हुआ है …
हम तो मोहब्बत में मशरूफ थे ,
आज तेरी वफा का हमें पता चला है…
तुम्हारे शहर की फिज़ा अलग है
प्यार है तो जैसे बिका पड़ा हैं….
बहुत हुआ अब कत्था लगाना
ये प्रेम का पान तो बटा हुआ है….
सोच रहा हूं में टिकट कटा लूं
मेरे गांव का मुझे पता चला है….
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश