
पहचान
( Pehchan )
प्रेम के मोती लुटाओ प्रतिभा कोई दिखाओ
पहचान जग में कोई नई बनाईए
सफलता मिल सके पर्वत भी हिंल सके
जंग भरी दुनिया में हौसला बनाइए
लगन से मेहनत रंग जरूर लाएगी
पहचान जग में आप ऐसी बनाईए
पूर्वजों की साख में चार चांद लग जाए
कर्म पथ पर अपनी साख बनाइए
सद्भाव प्रेम बांट दिलों में उतर जाना
खुशहाली प्यार भरा माहौल बनाइए
यश कीर्ति जग मिले करो वही व्यवहार
छवि हो जग में वो पहचान बनाइए
अपने ही दम पर बना सको पहचान
जीवन में काम ऐसा खुद अपनाइए
दूसरों के भरोसे जो रहते लोग आलसी
अपनी खुद नई पहचान बनाईए
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )