धरा हरसाई | Chhand Dhara Harsai
धरा हरसाई
( मनहरण घनाक्षरी )
वसुंधरा मुस्काई है, ऋतु बसंत आई है।
खिलने लगे चमन, बहारें महकती।
झूम उठी धरा सारी, नाच रहे नर नारी।
पुष्प खिले भांति भांति, चिड़िया चहकती।
अवनी अंबर सारे, नभ मे दमके तारे।
वादियों में गूंज रही, धमाले धधकती।
हरी भरी हरियाली, घर घर खुशहाली।
रंगों की रंगत छाई, मुस्काने महकती।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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