कैसे मनाऊँगी मैं होली | Kavita Kaise Manaungi main Holi
कैसे मनाऊँगी मैं होली ?
( Kaise Manaungi Main Holi )
कैसे मनाऊँगी मैं होली
अगर नहीं तुम आओगे।
कैसे लूँगी मीठी करवट,
अगर नहीं तुम आओगे।
साथ-साथ खाई थी कसमें
जो जीने -मरने की,
सराबोर करूँगी किसको
अगर नहीं तुम आओगे।
मालूम है मुझको कि तू
हो सरहद की रखवाली में,
लौटेगा बिना रंगे फागुन,
अगर नहीं तुम आओगे।
मैं हूँ जीवित बस तेरे सहारे,
ऐ! मेरे सुन्दर फ़ौजी,
नहीं पहनूँगी गुलाबी साड़ी,
अगर नहीं तुम आओगे।
एक दूजे में खोकर दुनिया,
भर ली अपनी झोली।
किसे दिखाऊँ नाजो-अदा
अगर नहीं तुम आओगे।
नजर तुम्हारी लगी हुई है,
उस प्राण प्रिय तिरंगे पर,
आज करूँगी किससे शरारत,
अगर नहीं तुम आओगे।
मैं रंग लूँगी कोरे बदन को
उस सरहद की खुशबू से,
मन की मैल कौन धोएगा,
अगर नहीं तुम आओगे।
हूक उठ रही है जो अल्हड़
मेरी इस भरी जवानी में,
पर मिटने न दूँगी लक्ष्मणरेखा,
अगर नहीं तुम आओगे।
पहली होली, नई ये चोली,
कुलेल है करती नथुनी,
रहूँगी रंग -भंग -हुड़दंग से दूर,
अगर नहीं तुम आओगे।
मस्ती चढ़ी है,न डूबेगी कश्ती,
भले है नमकीन महीना,
कैसे खुलेगा घूँघट-पट ये,
अगर नहीं तुम आओगे।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),मुंबई