आशिकी | Poem in Hindi on Aashiqui
आशिकी !
आजकल मुझको फिर से सताने लगे,
रात को मेरे सपनों में आने लगे।
मेरी चढ़ती जवानी का है ये असर,
अपने घर का ही रस्ता भुलाने लगे।
आजकल मुझको फिर से सताने लगे,
रात को मेरे सपनों में आने लगे।
रफ़्ता-रफ़्ता ये जीवन भी कट जाएगा,
टूटे मौसम भी फिर से सुहाने लगे।
बुझने देंगे न लौ आशिकी की कभी,
सुर्ख होंठों पे उंगली फिराने लगे।
आजकल मुझको फिर से सताने लगे,
रात को मेरे सपनों में आने लगे।
गुदगुदी का मजा अब न पूछो कोई,
मेरे नाजुक बदन कशमशाने लगे।
धड़कनों पे हुकूमत न मेरी रही,
मेरी दरिया उतर कर नहाने लगे।
आजकल मुझको फिर से सताने लगे,
रात को मेरे सपनों में आने लगे।
मयकदे की हवा खाने जाते नहीं,
मेरी नजरों से ही लड़खड़ाने लगे।
ख्वाहिशों के परिन्दे जो पिंजड़े में थे,
जश्न पे जश्न देखो मनाने लगे।
आजकल मुझको फिर से सताने लगे,
रात को मेरे सपनों में आने लगे।
आजकल पांव रखते नहीं हम जमीं,
वो बहारों की चादर बिछाने लगे।
हुश्न औ इश्क़ का ये सफर है कठिन,
पांव छाले का अपना गिनाने लगे।
आजकल मुझको फिर से सताने लगे,
रात को मेरे सपनों में आने लगे।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक), मुंबई