Bhishan Garmi
Bhishan Garmi

ऐसी भीषण गर्मी

( Aisi bhishan garmi ) 

 

कर लिया है गर्मी ने अभी से यह विकराल रूप,
ऐसी भीषण गर्मी से यें शक्लें हो रहीं है कुरूप।
तप रही है धरा एवं सभी प्राणियों का यह बदन,
बुझ ना रही प्यास किसी की पड़ रही ऐसी धूप।।

यह सहा नही जा रहा ताप दिन चाहें वो हो रात,
भास्कर ने फैलाई है माया दया करें ईश्वर आप।
कूलर पंखे और ए-सी आज सभी दे रहें ज़वाब,
भभक रही सारी धरती बरस रहा सूर्य का ताप।।

दहल रहा है गांव-गांव और नगर-शहर परिवार,
खेत-खलिहान भी झुलस रहे यह कैसी है मार।
सूख रहें है गांव ‌के छोटे बड़े यह पोखर तालाब,
बड़ी बड़ी सड़कें भी अपना छोड़ रही कोलतार।।

रोम-रोम से झर रही है सभी के पसीने की धार,
मच्छर भी गुनगुना रहे है अब जैसे राग मल्हार।
सांय-सांय करती हवाएं उड़ रही ऑंधी भरमार,
जेठ सी गर्मी लू के थपेड़े गगन से बरसे अंगार।।

हे सूरज भगवान अब करो नही हमको परेशान,
उमड़ घुमड़कर कर जाओं हे मेघराजा बरसात।
इस गर्मी ने लूट लिया‌ सभी का अमन सुखचैन,
गंगा-जमुना की धार बहाकर हमको दे सौगात।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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