Tabdeeli

तब्दीली | Tabdeeli

तब्दीली

( Tabdeeli )

 

आपके शब्द , नीयत और कर्म
समय की दीवार से टकराकर
लौटते ही हैं आप तक
यहां आपका बाली या सामर्थ्य कोई मायने नहीं रखता

मजबूर के मुंह से बोल नही फूटते
किंतु,उसकी आह जला देती है
किसी के भी सामर्थ्य को
वक्त किसी को माफ नही करता

चट्टानें भी ढह जाती हैं
धूप भी शाम मे बदल जाती है
सुबह तो होती है रात की भी
भटके राही भी पा लेते हैं मंजिल अपनी

कमजोर कोई नही होता
झुका देती है उसकी मजबूरी
दबी हुई डाली भी उठ जाती है ऊपर
प्रयास कभी व्यर्थ नहीं होता

टीले की ऊंचाई भी
जमीन की सख्ती पर ही निर्भर ही
वरना ,महलों को भी
खंडहर मे तब्दील होने मे
वक्त कहां लगता है

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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